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________________ ३९ शतपदी प्रश्नोत्तर पद्धति में प्रतिपादित जैनाचार ११ एक पक्ष प्रत्येक प्रत्याख्यान में "वोसिरामि" ऐसा बोलता है। दूसरा पक्ष प्रत्याख्यान ___ के अन्त में 'वोसिरामि' ऐसा शब्द बोलता है। १२ एक पक्ष प्रत्याख्यान में “विगईओ पच्चक्खामि" ऐसा पाठ बोलता है तो दूसरा पक्ष "विगईओ से सियाओ पच्चक्खामि" ऐसा पाठ बोलता है। १३. एक पक्ष एक परिकर में एक ही जिन बिम्ब बनाना मानता है तो दूसरा पक्ष एक ही परिकर में २४ तीर्थङ्कर, त्रिबिम्ब, पंचतीर्थी, सत्तरिसयपट्ट (१७० तीर्थङ्कर) बनाने का विधान करता है। १४. एक पक्ष एक गूढमण्डप तथा तीन द्वार बनाने का विधान करता है। दूसरा पक्ष एक ही द्वार का विधान करता है। १५. एक पक्ष एक मन्दिर में एक ही प्रतिमा की स्थापना करता है, तो दूसरा पक्ष अनेक प्रतिमा की स्थापना करता है। १६. कुछ लोग सामायिक ग्रहण करने के पूर्व श्रावक को इर्यापथिक करने का विधान करते हैं, तो दूसरे लोग सामायिक ग्रहण करने के बाद इर्यापथिक कहते हैं । १७. एक पक्ष मन्दिर के लिए कुआँ, बगीचा, तालाब, ग्राम, गोकुल तथा खेत आदि देने या बनवाने में पाप नहीं मानता है तो दूसरा पक्ष इन प्रवृत्तियों को सावद्य प्रवृत्तियाँ कह कर उनका निषेध करता है। १८. एक पक्ष जिनपूजा के समय श्रावक को पगड़ी रखने की बात करता है, तो दूसरा पक्ष उत्तरीयवस्त्र का विधान करता है। १९. एक पक्ष श्रावक को तथा सौभाग्यवती स्त्री को ही वन्दन प्रतिक्रमण करने का विधान करता है, तो दूसरा पक्ष ऐसा नहीं मानता। २०. एक पक्ष आरती को निर्माल्य मानकर एक ही आरती से अनेक जिन बिम्बों की आरती उतारता है, तो दूसरा पक्ष प्रत्येक बिम्ब के लिए अलग-अलग आरती उतारता है। २१. एक पक्ष उत्तरशाटिका कोई छह हाथ की, कोई पाँच हाथ की, तो कोई चार हाथ ___ की ग्रहण करता है। दूसरा पक्ष ऐसा नहीं मानता । २२. एक पक्ष खुले मुख से बात करने में पाप नहीं मानता, तो दूसरा पक्ष खुले मुख से बोलने में पाप मानता है। २३. एक पक्ष एकपटी मुखवस्त्रिका का विधान करता है, तो दूसरा पक्ष दोपटी मुख वस्त्रिका को मानता है। २४. एक व्यक्ति स्नात्रकाल में पर्व तिथि को ग्रहण करता है, दूसरा सूर्योदय से पर्वतिथि को ग्रहण करता है। तीसरा पक्ष सायंकाल में प्रतिक्रमण के समय तिथिग्रहण करता है। २५. एक पक्ष चतुर्दशी का क्षय होने पर त्रयोदशी को प्रतिक्रमण करता है, तो दूसरा पक्ष ___ पूर्णिमा को प्रतिक्रमण करता है। २६. एक पक्ष एक पटलक रखता है, तो दूसरा बिलकुल नहीं रखता। २७. एक पक्ष श्रावण या भाद्रपद का अधिक मास होने पर ४९ वें दिन पर्युषण पर्व मानता है तो दूसरा पक्ष ६९ वें दिन पर्युषण पर्व मानता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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