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________________ श्री. बनारसीदास जैन हो गये थे । उन के पत्र आपस में चिपक गये और लाख जतन करने पर भी पृथक न होते थे । नहीं कह सकते कि और कितने भंडार इसी प्रकार अपने रक्षकों (?) की लापरवाही से नष्ट हो चुके होंगे। सन् १८६० के लगभग भारत सरकार का ध्यान प्राचीन ग्रन्थभंडारों की ओर गया और उनके निरीक्षण का काम प्रारम्भ हुआ, जिस के फलस्वरूप पाटन, खंभात, अहमदाबाद, जैसलमेर आदि के प्रसिद्ध जैन भंडारों का निरीक्षण संस्कृत प्राकृत के प्रकाण्ड विद्वान् डा० बूलर, पीटर्सन, भाण्डारकर आदि ने किया । उन के निरीक्षण की रिपोर्ट बड़े महत्त्व की हैं। उनमें मुख्य यह हैं:बूलरकृत-नं० १ सन् १८७०-७१ नं० ५ सन् १८७४-७५ नं० २ सन् १८७१-७२ नं० ६ सन् १८७५-७६ नं. ३ सन् १८७२-७३ नं. ७ सन् १८७७-७८ नं. ४ सन् १८७३-७४ नं० ८ सन् १८७९-८० भाण्डारकरकृत-नं० १ सन् १८७९-८० नं. ४ सन् १८८३-८४ नं० २ सन् १८८०-८२ नं. ५ सन् १८८४-८७ नं. ३ सन १८८२-८३ नं. ६ सन १८८७-९१ पीटर्सन्कृत-नं० १ सन् १८८२-८३ नं. ४ सन् १८८६-९२ नं० २ सन् १८८३-८४ नं० ५ सन् १८९२-९५ नं. ३ सन् १८८४-८६ नं० ६ सन् १८९५-९८ इन के अतिरिक्त रायबहादुर हीरालाल ने मध्यप्रान्त तथा बरार के भंडारों का निरीक्षण करके सन् १९२६ में एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिस में मुख्यतया दिगम्बर ग्रन्थों का उल्लेख है। डा० वेलणकरसंपादित रायल एशियाटिक सोसायटी, बम्बई ब्रांच के जैन तथा गुजराती ग्रन्थों की सूची जो सन १९३० में प्रकाशित हुई । बर्लिन विश्वविद्यालय के जैन हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची जो सन् १८८०-९० में प्रकाशित हुई जिस का संकलन डा. वेबर ने किया था, इत्यादि ।। ... इसी सिलसिले में पंजाब के जैन भण्डारों का निरीक्षण भी आरम्भ हुआ था परंतु यह काम पूर्णरूप से नहीं होने पाया । सन् १८८० में पं. काशीनाथ कुण्टे ने कुछ काम जाताब्दि ग्रंथ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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