SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जैन आठ प्रकार निर्वाण का मार्ग-म. नि. सम्मादिट्ठिसुत्त " अयमेव अरियो अटुंगिको मग्गो सम्मा दिठ्ठि, सम्मा सकप्पो, सम्मा वाचा, सम्मा कम्मन्ना, सम्मा आजीवो, सम्मा वायामो, समा सति, सम्मा समाधि " अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यक् संकल्प, सम्यग् वचन, सम्यक्कर्म, सम्यग् आजीविका, सम्यग् व्यायाम, सम्यक् स्मृति, सम्यक् समाधि ये आठ प्रकार का मार्ग जैनों के रत्नत्रय में गर्भित है। सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान में, सम्यक्संकल्प सम्यग्ज्ञान में, शेष ६ व्यवहार और निश्चय सम्यक् चारित्र में गर्भित है। जरूरत हैं पाली सूत्रों को जैन सिद्धांत से मिलाकर बताया जावे । अहिंसा का उपदेश भी पाली में जैनो के समान है। एक दो पाली सूत्रों से मांसाहार त्याग में शिथिलता है। यदि बौद्ध संसार को यह समझा दिया जावे कि मांसाहार हिंसा का प्रचारक हैं तो मांसाहार की प्रवृत्ति बन्ध हो सक्ती है। परमोपकारी जैनधर्म की विशालता की छत्रछाया में जबतक करोड़ो मानव नहीं आएंगे तबतक हम इसे विशाल धर्म के सच्चे भंडारी नहीं कहलाए जा सक्ते । 100०००००००००००००00000000000000000०००००००००००००००००००००००००००००००००००००0000000000004 . 000000000000000000000000000000000000 जिस प्राणीकुं आत्मबोध नही हुवा है सो प्राणी यद्यपि मनुष्य देहवाला है तो भी तिसकुं शास्त्रकार ज्ञानी पुरुषो तो शृंग पुछ से रहित पशु ही ज कहेते है, क्युं के तिसकी आहार, निद्रा, भय अरु मैथुन आदि क्रिया पशुतुल्य ही होती है, जिस प्राणीकुं तत्त्ववृत्ति से आत्मबोध हो जाता है, तिस्से सिद्धिगति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति दूर नहीं है। जब तलक आत्मबोध नही होता है तब तलक ही सांसारिक विषयसुख में लीन रहेता है, जब सकल सुख का निधानरूप आत्मवोध हो जावे तब प्राणी सच्चिदानंद पूर्णब्रह्मस्वरूप-अनंतज्ञान-अनंतदर्शन--अनंतसुख--अरु अनंतशक्तिमान हो जाता है, अरु मोक्ष-मेहेल में अतींद्रिय सुख का आस्वादन करता है ॥ -श्रीमद् आत्मारामजी-अज्ञानतिमिरभास्कर पृ. १३५. शताब्दि ग्रंथ] .: १४७:. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy