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________________ श्री. दरबारीलाल जैन हिंसा-अहिंसा का परिणाम व्यक्ति के मनोभावों पर अवलम्बित न हो तो कोई भी अहिंसक नहीं हो सकेगा कारण-समस्त लोक जीवराशि से खचाखच भरा हुआ है, एक पैर उठाने पर या एक श्वास लेने पर अनेक प्राणियों का घात होना संभव है और हिंसा के पाप. से सदा लिप्त रहने के कारण यहीं नारकीय जीवन विताते रहना पड़ेगा, मोक्ष दुर्लभ हो जायगा, संसार के बन्धन में ही सदा बंधे रहना पड़ेगा । इसलिये भावों के अनुसार ही बंध मोक्ष की एवं अन्य क्रियाओं की व्यवस्था करना ठीक है। इस अहिंसा का परिपालन साधु (मुनि) सर्वदेश करते हैं। ये साधु सभी सांसारिक क्रियाओं से अलिप्त रहकर आत्महित एवं परहित करने में ही निरत रहते हैं। विषय और कषायों के दमन करने के लिये बहुविध कष्टों (परीषहों) के सहन करने में समर्थ रहते हैं, सर्वदा " सत्त्वेषु मैत्री" की उत्कृष्ट भावना को ध्यान में रखते हैं। सम्पूर्ण रूप से व्रतों का परिपालन करने से " इन्हें महाव्रती" कहते हैं। पूर्णतः अहिंसा का पालन ये ही साधु करते हैं । इस प्रकार ये साधु बहुविध कष्टों को साम्यभाव से सहन करते हुए कौपाधिक परतंत्रता को तिरस्कृत कर आत्मज्योति (पूर्णज्ञान प्रागेव फलति हिंसाऽक्रियमाणा फलति फलति च कृतापि । आरभ्य कर्तुमकृताऽपि फलति हिंसानुभावेन ॥५४ ॥ एकः करोति हिंसा भवन्ति फलभागिनो बहवः । बहवो विदधति हिंसां हिंसाफलभुगभवत्येकः ॥ ५५ ॥ कस्यापि दिशति हिंसा हिंसाफलमेकमेव फलकाले । अन्यस्य सैव हिंसा दिशत्यहिंसाफलं विपुलम् ॥ ५६ ॥ हिंसाफलमपरस्य तु ददात्यहिंसा तु परिणामे । इतरस्य पुनहिँसा दिशत्यहिंसाफलं नान्यत् ॥ ५७ ॥ अवबुध्य हिंस्यहिंसकहिंसाहिंसाफलानि तत्त्वेन । नित्यमवगृहमानैः निजशक्त्या त्यज्यतां हिंसा" ॥ पु. सि. ६० ।। जले जन्तुः स्थले जंतुराकाशे जंतुरेव च । जंतुमालाकुले लोके कथं भिक्षुरहिंसकः ॥ राज. वा. पृ. २७६ विष्वक्जीवचिते लोके क चरन् कोप्यमोक्ष्यत । भावैकसाधनौ बन्धमोक्षौ चेन्न भविष्यताम् ।। पं. आशाधरजी स क्रिया क्वापि नास्तीह यस्यां हिंसा न विद्यते । विशिष्यते परं भावावत्र मुख्यानुषंगिकौ ॥ शताब्दि ग्रंथ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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