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________________ श्री. मथुरदास जैन प्रतिष्ठा के साथ अध्यापन कार्य कर रहे हैं । इस संस्था में जैन जाति की तीनों (.म्प्रदायें तथा अजैन विद्यार्थी भी विद्यालाभ करते हैं । इस संस्था से अधिक से अधिक लाभ उठाना प्रत्येक जैन भाई का परम कर्त्तव्य है । पूज्य आचार्यश्रीजी की शिक्षाप्रियता केवल इसी संस्था से विदित नहीं होती है बल्कि श्री महावीर विद्यालय बम्बई आदि अनेक संस्थाओं को खोलकर आपश्रीजी ने जैन समाज के उत्थान के लिए अत्यावश्यक साधन शिक्षा का विशेष प्रचार किया है। जैन समाज को आप जैसे विद्याप्रेमी आचार्य पर गौरव हो सकता है। विशेष प्रसन्नता की बात है कि आपश्रीजी के गुरुवर स्वर्गीय आचार्य श्री विजयानन्दसूरिजी महाराज को शिक्षा से जिस प्रकार लगन थी उसी प्रकार आपश्रीजी के शिष्यरत्न उपाध्याय श्री ललितविजयजी महाराज को भी शिक्षा से विशेष प्रेम है । उपाध्यायश्रीजी महाराज के प्रयत्नस्वरूप श्री पार्श्वनाथ विद्यालय वरकाणा, श्री पार्श्वनाथ उम्मेद जैन बालाश्रम उम्मेदपुर आदि संस्थाएँ चल रही हैं । इस स्वर्गीय आचार्य श्री विजयानन्दसूरीश्वरजी महाराज की शिष्य परम्परा के अन्दर ज्ञानप्रचार की लगन सदा इसी प्रकार कायम रहे यही जिनदेव से प्रार्थना है । - जैन समाज की उन्नति के लिए जिस प्रकार बालकों को शिक्षा देने की आवश्यकता है उससे भी अधिक बालिकाओं को शिक्षा देने की जरूरत है। शिक्षित माता की सन्तान सदा उत्तम संस्कारवाली होती है। शिक्षण संस्थायें स्थापित करने के समान विशाल सरस्वती भवन की स्थापना करना, जैन धर्म के साहित्यिक एवं ऐतिहासिक तत्त्व की खोज होना, जैन समाजद्वारा उत्तमोत्तम ग्रन्थ, पत्र एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन होना, जैन समाज की कुरुढ़ियों का निवारण करना तथा पारस्पारिक संघ को दृढ़ बनाना आदि भी जैन समाज की उन्नति के लिए परमावश्यक बातें हैं । आशा है कि जैन समाज के धीमान् एवं श्रीमान् इन बातों की ओर ध्यान देकर जैन समाज की स्थिति को सबल बनावेंगे। ___ शताब्दि ग्रंथ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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