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________________ सूरीश्वरजी के पूनीत नामपर कतायें बढ़ती गईं, जिनके कारण सन् १९१९ में इसे लोअर मिडिलस्कूल, सन् १९२० में अपर मिडिलस्कूल और सन् १९२२ में हाईस्कूल करदिया गया, इसी वर्ष श्री विजयवल्लभसूरिजी का वहां चतुर्मास था, आप के उपदेश से स्कूल की बिल्डिंग के लिये २२ हज़ार रुपया जमा हुआ, जिसमें यह संस्था स्थायी हो गई । परन्तु पञ्जाब शिक्षा विभाग के हस्तक्षेप के कारण १९२३ में हाई की दोनों श्रेणियां बन्द कर दी गई, और पुनः १९२६ में खोल दी गईं, वर्तमान समय में हाइस्कूल की मिडिल और प्राइमरी शिक्षा की शाखायें ( वह भी गुरुदेव के नाम पर ही ) शहर में विद्यमान हैं, (शाखाओं सहित ) हाईस्कूल में ५७५ विद्यार्थी हैं, यह स्कूल पञ्जाब शिक्षा विभाग द्वारा स्वीकृत है, इसकी मिडिल और प्राइमरी शाखाओं को एड ( सहायता ) भी मिलती है, पंजाब यूनिवर्सिटी से इसका सम्बन्ध है, और मैट्रिक्युलेशन की परीक्षा के लिये तैयारी कराई जाती है। स्कूल में अंग्रेजी, गणित, भूगोल, इतिहास, संस्कृत, फारसी, ऊर्दू, साइन्स, सिविक्स और हाइजीन इत्यादि विषय पढ़ाये जाते हैं, मिडिल की श्रेणियों में बढ़ई तथा खिलौने बनाने का कार्य भी सिखाया जाता है, प्राइमरी विभाग में महाजनी हिन्दी भी पढ़ाई जाती है । धर्मशिक्षण का प्रबन्ध भी सन्तोष जनक है, छोटी श्रेणियों में शिक्षावली और ऊंची श्रेणियों में स्वतन्त्र स्कीम के अनुसार शिक्षा की जाती है, आनरेरी धर्माध्यापक ब्रह्मचारी शङ्करदासजी की निःस्वार्थ सेवाका छात्रों के चरित्र पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, साधारण परीक्षाओं के साथ धर्म की परीक्षायें भी ली जाती हैं, प्रश्नपत्र बाहर से मंगाये एवं बाहर ही देखे जाते हैं, सर्व प्रथम रहने वाले विद्यार्थी को विजयानन्द जयंती ( ज्येष्ठ शुदि ८ ) को लाला कालूमल चान्दमल बाबू - स्वर्णपदक भी दिया जाता है, और दूसरे नम्बरवाले को सात रु. पारितोषक श्री आत्मानंद जैन सभा की ओर से मिलता है । कुल २३ अध्यापकों में से २१ ट्रेंड हैं, सभी अपने अपने कार्य में दक्ष हैं इस कारण स्कूल की शिक्षण अवस्था सराहनीय है, मैट्रिक्यूलेशन और बर्नेक्यूलर परीक्षाओं के परिणाम अबतक बहुत ही अच्छे रहे हैं । व्यायाम, ड्रिल, स्काउटिंग चरित्र गठन आदि की ओर भी पूरा ध्यान दिया जाता है । जून १९३१ तक स्कूल श्री आत्मानन्द जैनगंज में लगता रहा, यह एक लम्बी चौड़ी मंडी है, जिसकी उपर की मंजिल में स्कूल लगा करता था, यह मकान श्वेताम्बर जैन पंचायत का है, दुकानों की आमदनी से स्कूल को आर्थिक सहायता • १०४ : [ श्री आत्मारामजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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