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________________ श्री. ईश्वरलाल जैन वरकाणा, जैन बालाश्रम, उम्मेदपुर आदि संस्था में गुरुदेव के नाम से न होने पर भी उन्हीं की स्मारक हैं, क्यों कि इन संस्थाओं के संस्थापक भी उन्हीं गुरुदेव के पट्टधर आचार्य श्री विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराज एवं उनके शिष्य रत्न पंन्यास श्री ललितविजयजी महाराज हैं, अन्य संस्थाओं का परिचय इस प्रकार है । : शिक्षण संस्थाएँ : श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल (पंजाब) गुजरांवाला जो कि अपने जीवन के दस वर्ष व्यतीत करचुका है, इस संस्था के स्थापित होने के इतिहास से मनोरञ्जन नहीं प्रत्युत एक उपदेश मिलेगा । जैसा कि पहिले लिख चुका हूं कि श्री विजयानन्दसूरीश्वरजीने पंजाब में अनेकों मन्दिर बनवाये ही थे, एक विशाल सरस्वती मन्दिर खोलने की उनकी इच्छा थी, जो उनके जीवन में पूर्ण न हुई, परन्तु स्वर्गीय आचार्य श्री के प्रशिष्यरत्न श्री विजयवल्लभसूरीश्वरजीने उनकी इस भावना को पूर्ण करने का निश्चय कर लिया और उसके लिये उन्हों ने अनेक कष्ट भी सहन किये, जब तक इस कार्य को पूर्ण न करेंगे, तब तक कोई मष्ट पदार्थ ग्रहण न करेंगे, एसी कई प्रतिज्ञाओं के साथ अपने एक लाख रुपयों के कोष ( Fund) की आवश्यकता समाज के सामने रखी । सन् १९२१ में जब कि भारत में असहयोग आंदोलन की लहरज़ोरों पर थी, श्री विजयवल्लभ सूरिजी ने पंजाब में प्रवेश किया और कुछ ही समय में २८००० रु. पंजाब श्री संघ की ओर से, ४००००रु. गुजरांवाला श्री संघ की ओर से प्राप्त होगया, और उधर आचार्य श्री के शिष्यरत्न ललितविजयजी महाराज को उनकी प्रतिज्ञा के सम्बन्ध में मालूम हुआ तो वह भी उस कार्य के पीछे लग पड़े और ३२००० रु. की रकम बम्बई के दानवीर शेठ विट्ठलदास ठाकोरदास से भिजवाई, एक लाख रुपया इस प्रकार पूर्ण हुआ, और माघ सुदि ६ शुक्रवार ता. ३० जनवरी १९२५ को गुरुकुल के नाम संस्करण का शुभमुहूर्त्त हो गया, और निःस्वार्थ सेवी, समाज के सच्चे कार्यकर्ता, त्यागी वीर वयोवृद्ध श्रीमान् बा. कीर्तिप्रसादजी BA, LL. B. जैसे सुयोग्य रत्न कार्यकर्ता के मिलने पर 'जिन्हों ने' आचार्य श्री के आदेश और पंजाब की प्रार्थना को सहर्ष स्वीकृत किया, और माघ सुदि ५ सम्वत् १९८३ तदनुसार ता. १७ जनवरी १९२६ को गुरुकुल का रचनात्मक कार्य प्रारम्भ हुआ, गुरुदेव के प्रताप और समाज शताब्दि ग्रंथ ] •: ९९ : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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