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________________ कुछ इधर उधरकी जब आचार्य देव (श्रीमद्विजयवल्लभसूरीश्वरजी ) मंदिर दर्शन के लिये जुलूस के साथ पधारे तो देखा कि मंदिर की सीढ़ियों पर लालाजी खड़े हैं। दूर से ही इन्हें देखकर उनकी घिग्घी बंध गई । " महाराज आत्मारामजी को कहाँ छोड़ आये?" कहते २ गला भर आया, रो उठे, आंखों से आंसुओं की धारा वह चली, सारी उपस्थित जनता भी इस दृश्य को देखकर रो उठी। - यह मेरी आंखों देखी घटना है। आंतरिक प्रेम का इस से अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है ? श्रावकों की गुरुओं पर इतनी श्रद्धा! इतना प्रेम ! गुरुदेव वास्तव में ऐसी ही श्रद्धा और प्रेम के पात्र थे । लुधियाना पंजाब के एक प्रधान शहरों में से है, किन्तु वहाँ केवल एक ही जैन मंदिर था, सो भी यतियों के डेरे के पास, नगर के किनारे, दूर, जहाँ स्त्रियों तथा बच्चों का दर्शन करने जाना कठिन था। स्वर्गस्थ आचार्यदेव ने इस आवश्यकता को देखते हुए मंदिर के बनवाने का उपदेश किया, किन्तु शहरों में बीच में स्थान प्राप्त करना कितना कठिन होता है, यह सब पर प्रगट है । श्रावक लोगों को लाला रामदित्तामल, की जो लुधियाना के क्षत्रिय वैष्णव थे, तथा गुरुदेव के परम भक्तों में थे, दूकानों का स्थान पसंद आया था। वे लोग हरएक मूल्य जिसे लालाजी मांगें प्रसन्नतापूर्वक देनेको तैयार थे; किन्तु कहने की हिम्मत किसी की न पड़ती थी। श्रावक लोगों ने स्वर्गस्थ आचार्यदेव से इसके लिए कई बार प्रार्थना की कि यदि आप उनसे फरमा दें तो काम हो जाय, किन्तु आप का सर्वदा यही उत्तर थाः "ऐसा कहना एक प्रकार से एक भक्त पर दबाव डालना है, गृहस्थी जीव है, इतना मैं कैसे कह सकता हूँ !" बात यों ही कुछ दिनों तक टलती रही । स्वर्गस्थ आचार्यदेव के साथ जो मुनिमण्डल सर्वदा रहा करता था, उनमें वर्तमान आचार्यदेव श्रीमद् विजयाल्लभसूरीश्वरजी भी हमेशां भक्तिपरायण थे। एक दिन समुनिमण्डल स्वर्गस्थ आचार्यदेव विराजमान थे, लालाजी भी उपस्थित थे । बातों ही बातों में वर्तमान आचार्यदेवने पूछाः *"क्योंकि वे दूक ने दालमण्डीमें थी जिस के आसपास जैनियों की भरपुर बस्ती है। [ श्री आत्मारामजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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