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________________ कुछ इधर उधर की न जाने कितने स्थान इस प्रान्त में हैं, जिन्हें लोग भूल से बैठे हैं, किन्तु उनका महत्व ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से भारत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है । तक्षशिला का महान् विश्वविद्यालय जो रावलपिण्डी के निकट स्थित था, आज भी अपने खंडहरोंद्वारा इस प्रान्त के शिक्षा तथा संस्कृति के केन्द्र होने को जोर से पुकार २ कर कह रहा है। भला, विद्वानों तथा मनीषियों की जन्मभूमि इस भूमि को यह गौरव न हो तो किसे हो सकता है ? प्राचीन भारत की विद्या तथा कला की भूमि यही है । सिन्धु का पवित्र जल जहाँ भारत की रक्षा करता था, वहीं इस देश का पालन कर के इसे संसार की संस्कृति के सम्मुख अपना शिर गौरवपूर्ण रूप से उन्नत रखने का उपदेश भी करता था इस भारत देश की रक्षा का केन्द्र पंजाब संपूर्ण भारत की यशभूमि था । यदि इसने अपना मन केवल संस्कृति तथा शिक्षा की ओर ही दिया होता तो न जाने इस देश का मानचित्र क्या से क्या होता ? किन्तु नहीं, इसने संसार में अपना शौर्य दिखलाकर भारत की रक्षा भी की थी । सहस्रों विदेशियों की उमड़ती हुई धारायें सहस्रों बार इस की विकट बाँध से टकरा कर चूर चूर हो गईं और भारत की रक्षा हुई । बहुत प्राचीन काल की बात तो दूर रही। शक, सीथियन, हूण आदि अनेक विदेशी जातियों को परास्त कर उन्हें भारत से खदेड़ कर बाहर निकालना इसी ने किया था । अलक्षेन्द्र ( सिकन्दर ) जिस समय सारे देशों को पराजित करता हुआ भारत में आया, भारत की शान रखनेवाला यही पंजाब था । महाराज पुरु की तीस सहस्र सेना यद्यपि हाथियों के बिगड़ने से तितरबितर हो गई थी, फिर भी उनका पराक्रम देखकर अलक्षेन्द्र को दाँतो तले अंगुली दबानी पड़ी थी और उसे उनका राज्य लौटाना पड़ा था । मुलतान में इन्हीं लोगों ने सिकन्दर को ऐसी बुरी पराजय दी थी कि जिस की चोटों के मारे जाते २ उसका बेबीलोन में अवसान ही हो गया था । ये घटनाएँ तो बहुत प्राचीन हैं । मध्यकाल में भी पंजाबियों की वीरता पग २ पर चमकती है । मुगल राज्यकाल में सिक्खों की बहादुर जाति चमक ऊठी थी । सिक्ख गुरुओं का बलिदान, उनकी वीरता, सिक्खों का धर्म सब ने मिलकर सारे पंजाब में सिक्ख राज्य स्थापित कर दिया था। एक दिन सारा का सारा पंजाब, काश्मीर .: ५६ : [ श्री आत्मारामजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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