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________________ मुनिश्री आत्मारामजी तथा चिकागो सर्वधर्म परिषद् अन्य धर्म भी हैं जो दार्शनिक विचारों में बाजी लिये हुवे हैं-आध्यात्मिक विचारों में पराकाष्ठा को पहुंचे हुवे हैं-स्वतंत्र गूढ़ विचारों में तथा प्राणी मात्र से सच्चे रूप में सहानुभूति रखने में विशालता को लिये हुवे हैं और किसी भी प्रकार से मनुष्यता तथा चारित्र में कम नहीं हैं।" परिषद में संसार के प्रायः सभी धर्मों के प्रतिनिधि सम्मिलित हवे थे तथा उसमें भाग लेनेवालों की संख्या लगभग दस हजार थी। उस समय के चोटी के दार्शनिक विद्वानों ने उस में भाग लिया था। एक हजार से उपर निबंध विविध प्रतिनिधियों की ओर से परिषद् में पढ़े गये थे । लोगों का अनुमान है कि समस्त संसार में इतनी बड़ी धर्म परिषद् शायद ही कभी हुई हो । परिषद् में उस समय के प्रसिद्ध विद्वान् स्वामी विवेकानंद तथा डाक्टर एनी विसेंट ने भी भाग लिया था । परिषद् बुलानेवाली कमेटी के प्रेमीडन्ट Rev. J. H. Barrows की ओर से हमारे गुरुदेव मुनिश्री आत्मारामजी की पवित्र सेवा में भी निमन्त्रण आया था। उस परिषद् में ( जहां कि समस्त संसार के धर्मों के प्रतिनिधि आए हुवे थे ) जैन धर्म का डंका बजाने के लिये आप की बड़ी प्रबल इच्छा थी परन्तु साधु धर्म के नियमों के कारण आप स्वयं उस में सम्मिलित न हो सकते थे किन्तु आप ने उस धर्म परिषद् में एक निबंध ( जिस में जैन धर्म का सच्चा स्वरूप दिया गया था तथा बताया गया था कि किस प्रकार संसार के प्राणीमात्र को केवल एक जैन धर्म की शिक्षा ही सच्चा सुखी तथा शान्तिप्रद जीवन दे सकती है ) भेजने की मंजूरी दे दी । गुरुदेव का स्वयं सम्मिलित न होना परिषद्वालों को किस प्रकार अरवरा यह उनके १२ जून १८९३ के निम्न लिखित पत्र से पता चलता है। CHICAGO, U. S. A. 12th. June 1893. My Dear Sir, I am desired by the Rev. Dr. Barrows to make an immediate acknowledgment of your favour of may 13. It is eminently to be desired that there should be present at the Parliament of Religions a learned representative of the Jain community. We are indeed sorry that there is no prospect of having Muni Atmaramji with us and trust the community over which he presides .:३६:. [ श्री आत्मारामजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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