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________________ होने का अनुमान लगता है । इस तथ्यके बावजूद पूज्य आचार्यश्री इस सूत्रको द्रव्य स्त्रीका वर्णन करने वाला मानते रहे थे। लेकिन जब आचार्यश्रीने कुंथलगिरिमें सल्लेखना स्वीकार की, तब उनके दर्शनार्थ एवं वैयाक्त्य हेतु हम दोनों ही वहाँ गये। उस समय ब्र० जीवराज गौतमजी दोशी भी वहाँ गये थे। उस समय महाराजश्री की दृष्टि चली गई थी। फलतः आवाज सुनकर उन्होंने मुझसे पूछा, "कौन है ?" मैंने विनय पूर्वक अपना नाम बताया। उस समय आचार्यश्री से कुछ वार्तालाप भी हुआ जिसका ब्लाक यहाँ दिया जा रहा है। यह वार्तालाप मराठी में है। आचार्यश्रीने संजद पदके संबंधमें अन्तिम अभिप्रायके रूपमें निम्न इसमें लिखित मत व्यक्त किया था : "जिनदास, धवला जीवस्थानका ९३वाँ सूत्र भावस्त्रीका वर्णन करनेवाला है। अतः वहाँ पर संजद पद अवश्य होना चाहिये, ऐसा निश्चयसे लगता है।" re पण संजदादत्रानना भूलद्रव्यस्त्री वर्णन करमा अहे. -सी खात्री स माती ही यातर महाराज भागरिधावरले बने सानो सहरवनाधारणली. त्यांची सन १४ मा करण्या मार्न परमजराभवानेच की गुलाबचन्द्रमवारामगांधी मटम्बगे हत आचार मराज निमारसनायासाठी मीठी बश्रीजीवरामी तमर्थदोशी यांच्याबरोबर गेला होता, मला आवार्य माराला मान्ति प्रदान की तीसत्कण्ठा शेतीपणा मला त्यांच्याजराग्यासलोक प्रतिर --- श्री गगनदीमा महरानादनमानीभासी ताजउग सनिलीवरमांनी मला एडदिवशी चार्म मह राज्यर दान vere महाराजांनादिसानसन्मामुळे जामजऐनाण अभप्रभले..मीविलमनंदनकरुन माझेळा सांगितन त्यानी मानार्थ पहाराज'रेजिनदाता पपलानीलल्ल सूरमारस्त्रीवर्षककरणा जाहेत्तय संबद शब्दस्य पाहिजेभ वाटते. परम पूज्य महाराजांवरनएन महाराजांच्या मत्पन्चपीवनिरग्रहवृत्तीबल मलाबीब-गुला श्रीमानक महानन्द मनी अशा सूचनाको हती नाती बन्मागवासासू जान संजदराब्दस्योडावी., , जिनदास मानाय मलेरिएटरको - 4210)vn परमपूज्य महाराजश्रीका वचन सुनकर उनकी सत्यान्वेषी प्रकृतिका पुनः विश्वास हआ। इस हम लोगोंको बड़ी प्रसन्नता हई । क्योंकि इससे 'संजद' पद संबंधी विवाद भी सदाके लिये हल हो गया है। संजद पद है पर तीसरी प्रतिमें वह ताड़पत्र ही नहीं है। फिर भी वह विवाद उस समय शान्त नहीं हुआ था। यह आचार्यश्रीके उपरोक्त अन्तिम अभिमत के साथ ही हल हुआ था। - ५७५ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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