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________________ गुर्जर कवि सोमेश्वर देव : एक परिचय श्रीमती सरला त्रिपाठी, कन्या महाविद्यालय, रीवाँ तेरहवीं शताब्दी गुजरातमें संस्कृत साहित्यके सजनका उत्कर्षकाल था। उस समय (११७८१२४१ ई०) चौलुक्य नरेश भीमदेव द्वितीय अणहिल पाटन (गुजरातकी राजधानी) के राज्य सिंहासन पर आसीन थे। इसी समय गजरातके साहित्याकाशमें महाकवि सोमेश्वरदेवका उदय हआ। उन काव्य कौमुदीसे राजा भीमदेवके सभामण्डपको आलोकित किया । सोमेश्वरदेवने अपने जन्मकालके विषयमें कुछ भी नहीं लिखा है। उनकी रचनाओंके अन्तः साक्ष्य तथा अन्य बाह्य साक्ष्योंके आधार पर ही उनका जीवनकाल तथा सर्जनाकालका निश्चित हुआ है। महाकवि सोमेश्वरदेवकी निम्न रचनायें उपलब्ध हैं, सुरथोत्सवम् तथा कीर्तिकौमुदी महाकाव्य उल्लाधराघव नाटक, रामशतकम्, स्तोत्र काव्य और कर्णामृतप्रभा स्फुट काव्य । सोमेश्वरदेव द्वारा रचे गये श्लोकोंमें ५ अभिलेख प्रशस्तियाँ भी हैं जो हिस्टारिकल इन्सक्रिप्शन्स आफ गुजरात,भावनगर में प्रकाशित हैं । ये प्रशस्तियाँ तत्कालीन निर्मित मन्दिरोंमें उत्कीर्ण की गई थीं। सुरथोत्सवम् सोमेश्वरदेव रचित पन्दह सर्गोंका एक पौराणिक महाकाव्य है । उन्होंने यह ग्रंथ मंत्री वस्तुपालकी प्रसन्नताके लिए लिखा था। ग्रन्थका विषय देवी भवानीकी महिमाका वर्णन है इस विषयमें काव्यके १५ वें सर्गके अन्तिम श्लोकमें कविने स्वयं कहा है : कुमारपुत्रेण कुमारमातुः काव्यं तदेतज्जगदेकदेव्याः । श्रतिस्मतिव्याकृति-यज्ञविद्या विशारदेन क्रियते स्म तेन ॥१५॥६०॥ ग्रन्थको पुष्पिकामें कवि स्वयं को गुर्जरेश्वर पुरोहित कहता है, 'इति श्रीगुर्जरेश्वर-पुरोहित सोमेश्वरदेव-विरचिते सुरथोत्सव नाम्नि महाकाव्ये कविप्रशस्ति-वर्णनो नाम पंचदशः सर्गः'। ___ उपर्युक्त साक्ष्यसे यह पता चलता है कि जिस समय सोमेश्वरदेवने इस ग्रन्थकी रचना की, उस समय वह गुर्जरनरेस भीमसेन देवका पुरोहित और सभासद था तथा मंत्री वस्तुपालका मित्र था। उन्होंने आधे प्रहरमें किसी नाटककी रचना कर राजा भीमदेवके सभासदोंको चकित कर दिया था। इसका उल्लेख सुरयोत्सवके पन्द्रहवें सर्गमें ४९ वें श्लोकमें है : काव्येन नव्य-पद-पाक-रसास्पदेन यामार्धमात्र-घटितेन च नाटकेन । श्रीभीमभूमिपति-संसदि सभ्यलोकमस्तोक-सम्मद-वंशवदमादधेयः ॥१५॥४९।। सोमेश्वरदेवने सुरथोत्सवके १५ वें सर्ग, कवि प्रशस्ति, में अपने वंश एवं पूर्वज परम्पराका उल्लेख किया है। वे ब्राह्मण वंशमें वशिष्ठ गोत्रमें उत्पन्न हुये थे। उनके पूर्वज परम्पराके मूल पुरुषका नाम सोल शर्मा था। उन्होंने चौलुक्य राजा मूलराजके अतिशय अग्रह पर पुरोहित पदको स्वीकार किया था। सोमेश्वर देवके पिताका नाम कुमार था। वे चौलुक्य मूलराज द्वितीयके पुरोहित एवं सेनापति थे। ये तीन भाई थे । इनके अग्रज महादेव थे। इनके अनुजका नाम विजय था। -४८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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