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________________ सारणी २. विभिन्न प्रकारके सोंका विवरण उदाहरण शंख, गोंच, विभिन्न प्रकारके कृमि कोटि द्वि-इन्द्रिय त्रि-न्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय तियंच (अ) जलचर (ब) थलचर (स) नभचर (पक्षी) चींटी, इल्ली, कनखजूरा, जुआँ पशु आदि । मक्खी, टिड्डी, भ्रमर, मच्छर, पतंगा, तितली आदि पंचेन्द्रिय मनुष्य ( अ ) सम्मूर्च्छन Jain Education International (ब) गर्भज मनुष्य अन्तद्विपी कर्मभूमि आर्य म्लेच्छ भोगभूमिज प्रज्ञापनां ३० ३९ ३८ ५ (३३) २ (३५) ४ (४६) १४ २८ ८९ ५६ २ ४७० - ४७४ - जाति जीव विचार प्रकरण १२ For Private & Personal Use Only १२ १० ५ ३ लिंग अलिंगी "1 अलिंगी और सलिंगी 17 22 इससे ज्ञात होता है कि जैनाचार्य अध्यात्मके क्षेत्रमें जितने अग्रणी रहे हैं, उतने ही वे प्रकृति निरीक्षण एवं सैद्धान्ति विचारोंके क्षेत्रमें भी अपने समय में अग्रणी रहे हैं । जैनने इन प्रकरणोंमें अनेक विसंग तियोंकी ओर संकेत देते हुये बताया है कि आगमोंमें अनेक वर्तमान सूक्ष्मतर निरीक्षणोंके निरूपण न करनेका कारण सम्भवतः यन्त्रोंका अभाव तथा अहिंसाका सिद्धान्त रहा होगा । वनस्पति विज्ञानके समान प्राणिविज्ञानके तत्व भी अनेक आगम ग्रन्थोंमें विखरे पड़े हैं । उनका अभी पूरा संकलन नहीं हो पाया है। ये प्रकरण श्वेताम्बर मान्य ग्रन्थोंमें पर्याप्त मात्रामें पाये जाते हैं । अलिंगी सलिंगी "" www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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