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________________ प्रभावक लेखनीके धनी राजकुमार शास्त्री, नवाई (टोंक) सम्माननीय सिद्धान्तमहोदधि प्रकाण्ड पंडित, निर्भीक प्रखरवक्ता, निःस्वार्थ प्रमख समाज सेवी, कर्मठ कार्यकर्ता, प्रभावक लेखनीके धनी श्री पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री-बनारसका अभिनन्दन किया जाना समाज सेवियोंकी सराहनीय सूझ-बूझ और कृतज्ञताका परिचायक है। उनका सम्मान समाज और विद्वानोंका सम्मान है। उनमें धर्मके प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा है। धर्म स्वरूपको समझानेकी अपूर्व क्षमता है। समाजोत्थानकी उत्कट लगन है । ढोंग और व्यर्थके वादविवादों तथा समाज विघटन करनेके क्रियाकलापोंसे उन्हें मर्मान्तक पीड़ा पहुँचती है। यदि इसी प्रकारसे थोड़ेसे भी विद्वान् समाजमें और हो जावें, तो मेरा विश्वास है कि समाजमें व्याप्त धींगाधीगी, कुरीतियाँ और विघटनकी क्रियायें सदाके लिये समाप्त हो सकती हैं। मैं ऐसे विद्वद्वरके लिये सदैव नतमस्तक होकर अपनी शुभकामनायें अर्पित करता हूँ। लोकप्रिय विद्वान एवं प्रभावशाली वक्ता __ डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर वाराणसी विद्वानोंकी नगरी है और इसी नगरीके विद्वान हैं पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री । वर्तमान विद्वत् वर्गमें सर्वाधिक लोकप्रिय विद्वान् हैं। पूरा जैन समाज उनके नाम एवं उनकी विद्वत्तासे परिचित है । मेरा उनसे कब परिचय हुआ, यह तो मझे याद नहीं है, लेकिन गत ३० वर्षोंसे मैं किसी न किसी रूपमें उनसे पत्राचारके माध्यमसे सम्पर्क में हैं। उनके प्रवचन सुने है । कितने ही गोष्ठियों व उत्सवोंमें उनके साथ रहनेका अवसर प्राप्त हुआ है और जबसे विद्वत् परिषद्को कार्य समितिका मैं सदस्य बना है, तबसे तो और भी उनके सम्पर्कमें रहा हूँ। __ शास्त्रीजीके प्रति सभी विद्वानोंकी अपार श्रद्धा एवं कृतज्ञताके भाव हैं। वास्तवमें स्याद्वाद महाविद्यालयमें प्राचार्यके पद पर रहकर आपने विद्वानों, सरस्वती-पतों तथा लेखकोंकी जो पंक्ति खड़ी की है, उसपर आज सारा समाज गर्व कर सकता है। लेकिन पण्डित जी विद्वानोंको तैयार करनेवाले अध्यापक या गुरु ही नहीं हैं, किन्तु प्राचीन सिद्धान्त ग्रन्थोंके उद्धारक हैं, सम्पादक हैं तथा लेखक हैं। उनकी अकेली जैनधर्म पुस्तक ही उनकी कीर्तिको अमर करनेके लिये पर्याप्त है। लेकिन आपने जयधवला जैसे महान् ग्रन्थके सम्पादन में सहयोग दिया तथा जैनन्याय जैसी सुन्दर पुस्तकको लिखनेका यश प्राप्त किया। आपकी बीसों पुस्तकें प्रकाशित होकर देश-विदेशमें जैन धर्मको उजागर कर रही हैं। पण्डितजी जैसे अच्छे लेखक एवं सम्पादक हैं, उसी तरह अच्छे वक्ता भी है। जब आप बोलने लगते है, तथा सिद्धान्तोंके रहस्यको समझाते हैं, तो श्रोतागण हर्षविभोर हो उठते है। यही कारण है कि पण्डितजीको अधिकांश समय वाराणसीसे बाहर रहना पड़ता है। आपके जीवनमें पूरी सादगी है। प्रदर्शन एवं दिखावेसे आप कोसों दूर रहते हैं । वाराणसीमें आप एक छोटेसे कमरेमें बैठे-बैठे सारे समाजको दिशा निर्देशनका कार्य करते हैं । कमरेमें एक टूटी-सी खटिया तथा २-४ पुरानी सियाँ मिलेंगी। आपके जीवनकी सादगीको देखकर कोई नहीं कह सकता कि सामने बैठा हुआ व्यक्ति वर्तमानमें जैन-समाजमें सर्वोपरि ख्याति प्राप्त विद्वान है। आप दिन-रात लेखन क्रियामें लगे रहते हैं तथा प्राचीन सिद्धान्त ग्रन्थोंका सम्पादन करते रहते हैं। -२६ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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