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________________ (य) एसियन कला संग्रहालय, सेन फ्रासिन्सको, कैलिफोर्निया इस संग्रहालय में भी देवगढ़ क्षेत्रसे प्राप्त कई जैन मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं जिनमें जिनके माता-पिताकी प्रतिमा काफी महत्त्वकी है । यहीं पर अंबिकाकी भी एक सुन्दर मूर्ति विद्यमान है, जिसमें वह आमके वृक्ष के नीचे त्रिभंग - मुद्रामें खड़ी है और पैरोंके निकट उनका वाहन - सिंह अंकित है । (र) बर्जीनिया कला संग्रहालय, रिचमोन्ड, बर्जीनिया इस संग्रहालय में सबसे महत्त्वपूर्ण भगवान पार्श्वनाथकी त्रितीर्थिक है जो राजस्थान में नवमी शती में बनी प्रतीत होती है । इसमें मध्य में पार्श्वनाथ ध्यान मुद्रामें विराजमान हैं सर्पके फणोंकी छायामें और उनके दोनों ओर एक-एक तीर्थंकर खड़ा दिखाया गया है । सिंहासनकी दाहिनी ओर सर्वानुमूर्ति तथा बाँई ओर अम्बिका दर्शाये गये हैं । सामने दो मृगोंके मध्य धर्मचक्र तथा अष्ट- होंके सुन्दर अंकन हैं । उपर्युक्त संक्षिप्त विवरणसे विदित होता है कि जैनधर्मने भारतीय मूर्तिकलाके क्षेत्रमें अपना एक विशिष्ट योगदान दिया है । सम्पूर्ण भारतके विभिन्न भागों में निर्मित देवालयोंके अतिरिक्त देश-विदेश के अनेक संग्रहालयों में भी जैनधर्मसे संबंधित असंख्य कला - मूर्तिर्या सुरक्षित हैं जिनका वैज्ञानिक एवं पुरातात्विक दृष्टिसे अध्ययन होना परमावश्यक है। अधिक नहीं, यदि सभी प्रतिमाओंके चित्रोंको कालानुक्रमके आधार पर प्रकाशित किया जा सके, तो वह भी बड़ा पुनीत कार्य होगा और इससे न केवल जैनधर्मावलम्बियों, वरन् • शोधकर्ताओंको भी बड़ा लाभ होगा । Jain Education International Re ३५६ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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