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________________ मूर्ति और खरीद (म० प्र०) की प्रतिमायें (१०वीं सदी) ली जा सकती हैं जिनमें सीधी तरफ बौना वीणा बजा रही है। देवी संगीतप्रिय भी तो है । मत्स्यपुराणमें देवीके बारेमें लिखा है : वेदाः शास्त्राणि सर्वाणि नृत्यगीतादिकं चयन् । न विहीनं त्वया देवि तथा मे सन्सू सिद्धये ॥ सरस्वती दो हाथकी भी मिलती है। गन्धावल, गोरखपुरकी सरस्वती चमकीले पत्थरकी द्विहस्त मूर्ति है। यह ११-१२वीं सदीकी है। पाला (२४ परगना, बंगाल) से प्राप्त (१०वीं सदी) मूर्ति त्रिभंग मुद्रा में खड़ी है । यह दोनों हाथोंमें वीणा पकड़े हुए है ! इसका शरीर पारदर्शक साड़ीसे पूर्ण रूपसे ऊपरसे नीचे तक एका हुआ है । सरस्वती केवल चार हाथ तक ही सीमित नहीं। जब वह शारदारूपमे चतुःषष्टि कलाकी अध्यक्षाके रूपमें आती है, उस समय उसके पाँच मुख और विभिन्न आयुधोंसे सुशोभित दस भुजायें दिखाये जाते हैं । वैसे विष्णुधर्मोत्तर तथा रूपमंडन आदि पुस्तकोंके अनुसार सरस्वती चतुर्हस्ता, श्वेतपद्मासना, शुक्लवर्णी, श्वेताम्बरी, जटामुकुट संयुक्ता एवं रत्नकुण्डलमण्डिता है। प्राचीनतम सरस्वती मूर्ति मथुराके कंकाली टीलेसे प्राप्त हुई है। यह ईसाकी द्वितीय शताब्दीकी मानी जाती है। यह कुषाण कालीन है । प्रतीकरूपमें यह भीटासे प्राप्त गोलमोहर पर मद्रघटके रूप में अंकित मिलती है। इस पर गुप्तलिपिमें सरस्वती लिखा है। सरस्वतीकी जैन मूर्ति दो प्रकारसे पहचानी जा सकती है। प्रथम, उस पर स्वयं विस्तृत उल्लेख उत्कीर्ण हों। दूसरे, मूर्तिके साथ जैन तीर्थकर दर्शाये गये हों। ब्रिटिश म्यूजियममें प्राप्त सरस्वतीकी प्रतिमाके पीठके ऊपर ध्यानमुद्रामें पाँच तीर्थकर बैठे हैं। यह ११-१२वीं सदीकी है। श्वेतसंगमरमरकी यह मूर्ति त्रिभंग मुद्रामें प्राप्त चतुर्हस्ता चित्र १. सरस्वती, चौहान, १२वीं शती ई० देवी है। इनके दोनों हाथ पैर टूट चुके हैं और बायें हाथम पल्लू, बीकानेर, राजस्थान FE अक्षमाला और नीचेवालेमें पुस्तक है । इसी म्यूजियममें प्राप्त दूसरी मूत्ति सुन्दर है। यह एक अपूर्व वीणा वादन करती सरस्वती प्रतिमा है। सबसे पूर्व भाग कलहंसका है। चतुर्हस्ता देवी अपने ऊपरके दायें हाथमें अक्षमाला, बाएँ हाथमें पुस्तक और नीचे दोनों हाथोंमें वीणा बजा रही हैं। मक सरस्वती प्रतिमाओंकी शृंखलामें प्रतिष्ठित सुन्दरतमकृति १२वीं सदीकी पल्लकी जैन सरस्वती मत्ति है। ये एक ही कालकी एक-सी मिलती-जुलती दो प्रतिमाएँ बीकानेरसे प्राप्त हुई हैं। इनमें एक राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्लीमें तथा दूसरी बीकानेर संग्रहालयमें है। देहली वाली श्रेष्ठतम मूर्ति चित्रमें दी गई है। वह मूर्ति स्फटिक (संगमरमर) की बनी होनेके कारण श्वेताम्बरी तो है ही, यह चतुर्हस्ता भी है। ऊपर -३२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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