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________________ मार्गदर्शनमें अन्य अनेक जैन संस्थायें भी वृद्धिंगत हैं। सेठ बालचन्द हीराचन्दकी धर्मपत्नी श्रीमती कस्तुरबाईका तो जैन और भारतीय समाज पर बड़ा ऐहसान है। उनके द्वारा निर्मित कस्तूर बाई ट्रस्टके द्वारा आज अनेक संस्थायें कार्यरत हैं। नाना भाई ठाकरसीके नामसे स्थापित विद्यापीठ स्त्रीशिक्षणके कार्यमें अग्रसर है । कर्वे महिला विद्यापीठकी कुलगुरु डा० माधुरी शहाका स्त्री शिक्षणमें योगदान है । क्षु० राजुलमती (शोलापुर) और चन्दावाई आरा जैन समाजमें मशहूर समाजसेविकाएँ मानी जाती हैं। क्षु० राजुलमतीने विधवा स्त्रियोंकी दीनतापूर्ण स्थिति और शिक्षाका अभाव देखकर सम्पूर्ण जीवन उनकी सेवामें अर्पण कर दिया। शोलापुरसे सुचारु रूपसे कार्यरत श्राविकाश्रस आज भी उनके महान कार्यका स्मारक है। आरामें जैन बालाविश्राम (चन्दाबाईके द्वारा स्थापित) आज स्त्रीशिक्षाका प्रमुख केन्द्र बना हुआ है। चंदाबाई एक कुशल लेखिका, पत्रकार, कवियित्री, समाजसुधारक एवं संस्थासंचलिकाके रूपमें प्रसिद्ध विदुषी महिला हैं। जैन महिलादर्श पत्रिकाका सम्पादन तथा अखिल भारतीय महिलापरिषद्का नेतृत्व और संस्थापकत्व आपका ही है। लातचन्द हीराचन्दकी स्नुषा सौ० सरयुबाई विनोदकुमार देशीने जैन कलाका गंभीर अभ्यास करके पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की है। आज वे अमेरिकामें भारत कलाकी प्राध्यापिका हैं। डा० शांता भागवतके समान अनेक महिलाएँ भी पी-एच०डी० से विभूषित हो रही हैं और विभिन्न क्षेत्रों में अपना यश अजित कर रही हैं। ' जैन महिलाओंमें शिक्षाके प्रसारके साथ-साथ नूतन साहित्य निर्माणमें भी अनेक विदुषी महिलाओंने अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। साध्वी चन्दना दर्शनाचार्यने अनेक ग्रन्थोंका लेखन और सम्पादन त्तराध्ययनसूत्र पर लिखे ग्रन्थसे उनकी विद्वत्ता और दर्शनशास्त्रके प्रभुत्व का पता चलता है। अमरचन्दजी महाराजकी प्रेरणासे राजगहमें चल रहे वीरायतनके संचालनका कार्य भी आपने संभाला है। अहमदनगरकी साध्वी विदुषी उज्ज्वल कुमारी अपने अनेक ग्रन्थोंमें एक विदुषी लेखिकाके नामसे प्रसिद्ध हैं। विविध भाषाओंका ज्ञान और अष्टसहस्री ग्रन्थकी भाषाकार आर्यिकारल ज्ञानमती माताजी प्रसिद्ध लेखिकाओंमें से हैं। विदुषी सुपार्श्वमती माताजी भी लेखिकाके रूपमें प्रसिद्ध हैं। कविता, नाटिका, नाटक, उपन्यास, इतिहास आदि अनेक साहित्यिक विषयों पर अधिकारसे लिखने वाली अनेक जैन महिलाएँ निरन्तर आगे बढ़ रही हैं। उदाहरणके लिये, सौ. सुरेखा शहाके उपन्यास मासिकोंमें नियमित रूपसे प्रकाशित होते है । श्रीमती विद्युलतावाई शहा मुख्याध्यापिका और लेखिकाके रूपमें प्रसिद्ध हैं। श्रीमती कुमुदिनीबाई दोशी जैन बोधककी सम्पादिका होने के साथ सामाजिक कार्यों में आगे रहती है। आर्यिका विशुद्धमतीजीने त्रिलोकसार-जैसी सुलभ रचना उपलब्ध की है। श्रीमती रूपवती किरणकी अगणित कहानियों एवं एकांकियोंसे कौन परिचित न होगा ? डा० सूरजमुखीजी अपनी अल्पवयमें ही एक महिला महाविद्यालयकी प्राचार्य बनकर स्त्रीशिक्षाके क्षेत्रको नई दिशा दे रही हैं। डा० विमला चौधरी भी इसी कोटिकी एक अन्य सुश्रुत महिला हैं। राजनीतिक क्षेत्रोंमें कई महिलाएँ अग्रसर रही हैं । उदाहरणके लिये, अलंमे आक्आने राजकीय चुनावमें भाग लेकर आमदार पद विभूषित किया है। साथमें, वे श्राविकाश्रम (बम्बई) की संचालिका भी हैं। श्रीमती लेखवती जैन हरियाना विधान सभाको अध्यक्षके नाते प्रसिद्ध हैं। पूना की आमदार सी० लीलावती मर्चेट, गुजरात राज्यकी शिक्षामन्त्री श्रीमती इन्दुमती सेठ, दिल्ली प्रदेश सभाकी अध्यक्षा श्रीमती ओमप्रकाश जैन आदि जैन महिलाएँ राजनैतिक क्षेत्रमें महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं । इन विदुषियोंके अतिरिक्त सौ० बांसतीबाई शहा, डा० विजयाबाई पांगल (कोल्हापुर), चंचलाबाई शहा (बम्बई), मंजुलाबाई कारंजा-ये जैन महिलाएं भी विभिन्न सामाजिक कार्य करने में अग्रसर रहती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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