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________________ नष्ट नहीं हो सकती है। भारतमें २६ करोड़ स्त्रियों से केवल १८७ प्रतिशत स्त्रियाँ पढ़ी लिखी है पर वे भी रुढ़ियोंकी दास बनी हुई हैं। भारतमें आज भी लड़कीके पैदा होने पर कोई खुशी नहीं मनाई जाती। बेटी पैदा होते ही उसे देनेके लिये जिन्हें दहेजकी चिन्ता होने लगती हो, उन्हें उसके जन्म की खुशी भी कैसे होगी ? लड़कीका पालन-पोषण तो करना ही पड़ता है । पर उसके साथ लड़के की तुलनामें हीन वर्ताव किया जाता है। लड़कीको तो मेहनती, सेवाभावी और दयालु बनानेकी चेष्टा की जाती है । लड़कीके लिये विवाह माँ-बापके घरकी अन्तिम सीढ़ी होती है । विवाह होते ही माँ-बापका नाम हटाकर उसे पतिके सामने समर्पण कर देना पड़ता है । फिर पतिका वंश चलाते हुये उसकी सेवा करना, यही उसका कर्तव्य रह जाता है और यह होती है उसकी विकासको अन्तिम सीढ़ी, फिर चाहे वह शिक्षित हो, अशिक्षित हो, गरीब हो या अमीर हो । विवाह आपसी सम्बन्धोंमें मिलने वाले सूखके लिये किया जाता है, पर यह सुख स्त्रियोंको बड़ा महंगा पड़ता है । कर्त्तव्यका पहाड़ सामने होता है । उन्हें यह पहाड़ पार करना ही पड़ता है। इतना करने पर भी स्त्री पुरुषकी गुलाम मानी गयी है और उसे पुरुषकी श्रेष्ठताको स्वीकार करना ही चाहिये, ऐसा माना जाता है । वास्तवमें, विवाह होनेके बाद पति तो बाहर नौकरी पर जाता है और पत्नी घर सम्भालती है। रसोई आदिकी व्यवस्था करती है। इसका अर्थ यह हुआ कि विवाह दोनोंकी भागीदारीका बन्धन है और अकेले पति या दोनोंकी कमाई पर दोनोंका एक दूसरे पर हक होना चाहिये। पर मध्यम वर्गीय या उच्च मध्य वर्गीय परिवारोंमें भी पुरुषकी कमाई पर स्त्रीका कोई हक नहीं माना जाता। गरीबोंकी तो बात ही दूर है। विवाहके उपरान्त बच्चोंके पालन-पोषणके लिये माँ कितना भी कष्ट उठाती हो, उसे कोई नाम नहीं मिलता। पैदा होनेके दिनसे मरनेके क्षण तक स्त्री निरपेक्षा सेवापरायण रहती है। भारतमें २६ करोड़ स्त्रियोंमेंसे करीब सात लाख स्त्रियाँ ही स्नातक हैं और तीस लाख मेट्रिक पास हैं। इनमें भी शिक्षित कही जाने योग्य स्त्रियोंकी संख्या तो केवल दस लाख ही होगी। स्नातकोंमें केवल बीस प्रतिशत स्त्रियोंके पास नौकरियां हैं। तीस लाख मैट्रिक पास स्त्रियों मेंसे केवल पाँच प्रतिशत स्त्रियोंको नौकरी है। मध्यवर्गीय स्त्रीको आर्थिक परिस्थितिके कारण नौकरी करना आवश्यक हो गया है। लेकिन पुरुषोंके समान स्त्रियोंको नौकरीकी सुविधा नहीं मिलती है। विवाहित स्त्रियोंको नौकरी प्रायः नहीं मिलती है। उन्हें उच्च स्तरके पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता । नौकरीमें सुरक्षाका प्रबन्ध नहीं, वि षकर ग्रामीण भागमें उन्हें कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है। नौकरी करने वाले पुरुषोंको जो आदरभाव घरमें मिलता है, वह स्त्रियोंको नहीं मिलता। नौकरी करनेके बाद घरमें आने पर उसे वे सभी काम करने पड़ते हैं, जो सामान्य स्त्रियाँ करती हैं । बल्कि उससे ज्यादा कामकी अपेक्षा की जाती है। नहीं तो, उसका सुशिक्षित होना निन्दास्पद करार दिया जाता है। कुछ पुरुष तो स्त्रीको केवल उपभोगकी वस्तुमात्र समझते हैं। फिल्मोंमें, नाटकोंमें, होटलोंमें कलाके नाम पर स्त्रियोंको जिस रूपमें पेश किया जाता है, उसे देखकर लगता है कि स्त्री पुरुषोंके लिये दिल बहलानेका खिलौना मात्र है। हजारों वर्षकी यह परम्परा स्त्री एकाएक नहीं तोड़ सकती। यदि कुछ स्त्रियाँ हिम्मत भी करें, तो रूढ़िवादी स्त्रियाँ उन्हें उच्छृङ्खल, बदचलन कहकर उनका तिरस्कार करती हैं। इस प्रकार गुलामीकी यह परम्परा कहीं टूट नहीं जाये, इसलिये शालीनता, आज्ञाकारिता, विनयशीलता, त्याग, परिश्रमशीलता, सहनशीलता, चरित्रसम्पन्नता, सतीत्व जैसे सब गुण अपनेमें लाना स्त्रीका परम कर्तव्य माना गया है । इन गुणोंसे सम्पन्न होकर वह पुरुषके लिए प्रशंसनीय बने, उसकी सेवामें अपना सर्वस्व लूटा दे, यही शिक्षा परम्परागत रूपसे उसे मिली है। आज सभी क्षेत्रोंमें पुरुषोंके बराबर काम करने पर भी वह स्त्रीको हीन दृष्टिसे देखता है। मैं यह - २९९ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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