SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यप्रदेशमें जैनाचार्योंका विहार डा० विद्याधर जोहरापुरकर, जबलपुर मध्यप्रदेशमें जैनधर्म वर्तमान मध्यप्रदेश नवम्बर १९५६ में अस्तित्व में आया और इसमें ब्रिटिशयुगके मध्यप्रान्त व बरार क्षेत्र के महाकोशल एवं छतीसगढ़-क्षेत्र, विन्ध्य-क्षेत्रके छत्तीस राज्य, भोपाल राज्य तथा मालव और ग्वालियर क्षेत्रके अनेक राज्य समाहित हुये हैं । यह क्षेत्रफलकी दृष्टिसे भारतका सबसे बड़ा राज्य है और वस्तुतः ही भारतका मध्य हृदय स्थल है। भारतीय राजनीति और सांस्कृतिक इतिहासमें इस क्षेत्रका मौलिक तथा अमूल्य योगदान है। इस क्षेत्रके प्रत्येक महत्त्वपूर्ण भागमें जैनधर्म के अनुयायी पाये जाते हैं । इससे इस क्षेत्रके जैन संस्कृतिसे प्रभावित होनेका अनुमान लगाया जाता है । यह अनुमान तब पुष्ट हो जाता है जब हम यह देखते हैं कि इसके मालव, विदिशा, सोनागिर, दशपुर, ग्वालियर, पपौरा, अहार, खजुराहो, छतरपुर, दमोह, आदि क्षेत्रोंमें अनेक पुरातात्त्विक महत्त्वके जैन अवशेष मिलते हैं जिनका अनेक विद्वानोंने अधिकृत अध्ययन किया है। इस क्षेत्रमें जैनधर्मके प्रचार-प्रसार और प्रभावके कार्यमें अनेक श्रेष्ठियों एवं राजाओंके अतिरिक्त अगणित जैनाचार्योने भी योगदान किया है। इस योगदानका स्फुट विवरण ही अनेक स्थलों पर मिलता है । इस योगदानके महत्त्वको दृष्टिमें रखते हुये मैं इस लेखमें इन क्षेत्रोंमें ५०० ई० पू० से उन्नीसवीं सदीके बीचके चौबीस वर्षों में विचरण करने वाले या विकास करने वाले कुछ आचार्योंकी विवरणिका दे रहा है जिससे भावी शोधार्थी इस क्षेत्रमें काम करनेके लिये प्रेरणा प्राप्त करें और मध्यप्रदेशमें जैन संस्कृतिके विकास मूल्यांकित करें। अपनी सीमाको देखते हुये मैंने यहाँ कुछ प्रमुख क्षेत्रोंका विवरण ही दिया है, अन्य क्षेत्रोंके विषयमें सामग्री एकत्रकी जा रही है। महावीर-निर्वाणके एक हजार वर्ष भगवान महावीरके निर्वाणके बाद प्रथम दो शताब्दियोंमें मध्यप्रदेशमें जैन आचार्योंके विहारका कोई स्पष्ट वर्णन प्राप्त नहीं होता। तदनन्तर आचार्य भद्रबाहुने उज्जयिनीमें विहार किया, वहाँ राजा चन्द्रगुप्त ने उन सभीका सम्मान किया और बादमें उनके संघने दक्षिणमें विहार किया। ऐसा वर्णन हरिषेणाचार्यके बहत्कथाकोशमें उपलब्ध है । आचार्य भद्रबाहके प्रशिष्य आचार्य सुहस्तिके उज्जयिनीमें विहारका और वहाँके श्रेष्ठी अवन्ति सुकुमार द्वारा उनसे दीक्षाग्रहणका वृत्तान्त राजशेखर सूरिके प्रबन्धकोशमें मिलता है। आचार्य कालकके उज्जयिनीमें विहारका और वहाँ अत्याचारी राजा गर्दभिल्लके विनाशका वृत्तान्त प्रभाचन्द्राचार्यके प्रभावकचरित में तथा अन्यत्र भी प्राप्त होता है । इस ग्रन्थके अनुसार आचार्य व्रजका जन्म भी अवन्ती प्रदेशमें हआ था तथा उन्होंने उज्जयिनीमें आचार्य भद्रगप्तके दशपूर्व ग्रंथोंका अध्ययन किया था। इस बातका भी १. जैनशिलालेखसंग्रह, भा० १ प्रस्तावना, पृ० ५७ २. प्रबन्धकोश (फोर्वस सभा संस्करण), पृ० ३८ ३. प्रभावकचरित (निर्णयसागर संस्करण), पृ० ३८, पृ०८, पृ० ११४ -२८८ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy