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________________ अन्तिम तीन रचनाएँ संस्कृत भाषामें तथा पाँचवीं रचना अपभ्रंश भाषामें निबद्ध है । अन्तर्वाह्य साक्ष्योंके आधार पर तथा उनके रचनाकालोंको ध्यानमें रखते हुए यहाँ स्पष्ट विदित हो जाता है कि उन चारों कृतियोंके लेखक भिन्न-भिन्न विबुध श्रीधर है, क्योंकि उनका रचनाकाल वि० सं० १४ वीं सदी से १७ वीं सदीके मध्य है जो कि प्रस्तुत पासणाहचरिउके रचनाकाल (वि० सं० ११८९ ) से लगभग २०० वर्षों के बाद की है । अतः कालकी दृष्टिसे उनके कर्तृत्वका परस्परमें किसी भी प्रकारका मेल नहीं बैठता । अवशिष्ट प्रथम चार रचनाएँ अपभ्रंश की हैं। उनकी प्रशस्तियोंसे ज्ञात होता है कि वे चारों रचनाएं एक ही कवि विबुध श्रीधर की हैं जो विविध आश्रयदाताओंके आश्रयमें लिखी गईं। कविपरिचय एवं कालनिर्णय सन्दर्भित 'पासणाहचरिउ' की प्रशस्तिमें विबुध श्रीधरने अपने पिताका नाम गोल्ह एवं माताका नाम वील्ह बताया है । इसके अतिरिक्त, उन्होंने अपना अन्य किसी भी प्रकारका पारिवारिक परिचय नहीं दिया । पासणाहचरिउ की समाप्तिके एक वर्ष बाद प्रणीत अपने वढ्ढमाणचरिउमें भी उन्होंने अपना मात्र उक्त परिचय ही प्रस्तुत किया है । वह गृहस्थ था अथवा गृह-विरत त्यागी, इसकी भी कोई चर्चा उन्होंने नहीं की। कविकी 'विबुध' नामक उपाधिसे यह तो अवश्य ही अनुमान लगाया जा सकता है कि अपनी काव्य प्रतिभा के कारण उसे सर्वत्र सम्मान प्राप्त रहा होगा, किन्तु इससे उसके पारिवारिक जीवन पर कोई भी प्रकाश नहीं पड़ता। 'पासणाहचरिउ' एवं 'वड्ढमाणचरिउ' की प्रशस्तिके उल्लेखानुसार कविने चंद्रप्पहचरिउ एवं संतिजिणेसरचरिउ नामक दो रचनाएँ और भी लिखी थीं किन्तु ये दोनों अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। हो सकता है कि कविने अपनी इन प्रारम्भिक रचनाओंकी प्रशस्तियोंमें स्व-विषयक कुछ विशेष परिचय दिया हो, किन्तु यह तो उन रचनाओंकी प्राप्तिके बाद ही कहा जा सकेगा। विबुध श्रीधरका जन्म अथवा अवसान सम्बन्धी तिथियाँ भी अज्ञात हैं। उनकी जानकारीके लिए सन्दर्भ सामग्रीका सर्वथा अभाव है। इतना अवश्य है कि कविकी अद्यावधि उपलब्ध चार रचनाओंकी प्रशस्तियोंमें उनका रचना समाप्ति-काल अंकित है। उनके अनुसार पासणाहचरिउ तथा वडढमाणचरिउका रचना समाप्ति-काल क्रमशः वि० सं० ११८९ एवं ११९० तथा सुकुमालचरिउ एवं 'भविसयत्त कहा' का रचना-समाप्ति काल क्रमशः वि० सं० १२०८ और १२३० है। जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है 'पासणाहचरिउ' एवं वड्ढमाणचरिउमें जिन पूर्वोक्त 'चंदप्पहचरिउ' एवं संतिजिणेसरचरिउ नामक अपनी पूर्व रचित रचनाओंके उल्लेख कविने किये हैं वे अद्यावधि अनुपलब्ध ही हैं। उन्हें छोड़कर बाकी उपलब्ध चारों रचनाओंका रचनाकाल वि० सं० ११८९ से १२३० तकका सुनिश्चित है। अब यदि यह मान लिया जाय कि कविको उक्त प्रारम्भिक रचनाओंके प्रणयनमें १० वर्ष लगे हों तथा उसने २० वर्षकी आयुसे साहित्य-लेखनका कार्यारम्भ किया हो, तब अनुमानतः कविकी आयु लगभग ७१ वर्षकी सिद्ध होती है और जब तक अन्य ठोस सन्दर्भ-सामग्री प्राप्त नहीं हो जाती, तब तक मेरो दृष्टिसे कविका कुल जीवन काल वि० सं० ११५९ से १२३० तक माना जा सकता है। निवास स्थान एवं समकालीन नरेश पासणाहचरिउकी प्रशस्तिमें कविने अपनेको हरयाणा देशका निवासी बताया है और कहा है कि वह कहासे चंदप्पहचरिउकी रचना-समाप्तिके बाद यमुना नदी पार करके ढिल्ली आया था। उस समय वहाँ राजा अनंगपाल तोमरका राज्य था जिसने हम्मीर जैसे वीर राजाको भी पराजित किया था। अठारहवीं सदीके अज्ञातकर्तक “इन्द्रप्रस्थप्रबन्ध' नामक ग्रन्थमें उपलब्ध तोमरवंशी बीस राजाओंमेंसे उक्त अनंगपाल १. राजस्थान पुरातत्त्व विद्यामन्दिर, जोधपुरसे प्रकाशित, १९६३ -२२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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