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________________ अर्थात् यदि ग्राम प्रवेशके समय कोई चक्रधर भिक्षु सामने मिले, तो चातुर्मासमें भ्रमण करना पड़ेगा, पांडुरङ्ग भिक्षु मिले, तो भुखमरी भोगनी पड़ेगी, बौद्ध भिक्षु मिले तो रक्तपात सहन करना पड़ेगा और दिगम्बर या अश्वेत भिक्षु मिलने पर निश्चित रूपसे मरण होगा। इसी प्रकार यह भी महत्त्वपूर्ण है कि पालि साहित्यमें भी पण्डरङ्ग परिव्राजकका उल्लेख मिलता है। इस तथ्यकी ओर मेरा ध्यान प्रो० पी० वी० वापटने आकृष्ट किया है। इससे भी यह स्पष्ट होता है कि श्वेत भिक्ष श्वेताम्बर जैन साध नहीं है । इसके समर्थन में अनेक प्रमाण दिये जा सकते हैं । उदाहरणा दीपवंसमें बताया गया है कि सच्चे बौद्ध भिक्षुओंका तो सत्कार किया जाता है जबकि पण्डरङ्ग भिक्षुओंके सत्कारमें क्षीणता आई है : पहीन-लाभ-संकारा तित्थिया पुथुलद्धिका । पंडरंगा जटिला च निगंठाऽचेलकादिका ॥ अर्थात् जिन विविध विचारधाराओंके तीर्थंकरोंके सरकारमे क्षीणता आई है, उनमें पण्डरङ्ग, जटाजूटधारी, निर्ग्रन्थ या अचेलक तीर्थंकर आदि समाहित हैं। विनयपिटककी टीका समन्तपासादिकामें यह स्पष्ट लिखा है कि पण्डरङ्ग परिव्राजक ब्राह्मणपरम्पराके थे। समन्तपासादिकाकी एक टीका, सारत्थदीपनीमें इस विषयकी व्याख्यामें लिखा है कि पंडरंग परिव्राजक ब्राह्मण जातिके होते हैं। यह दर्शानेके लिए ही ब्राह्मण जातीय पासडांन नामसे उनका उल्लेख किया गया है । यहाँ पण्डरङ्ग आदिको ही पाखण्ड कहा गया है क्योंकि ये सब पाखण्डका जाल फैलाते हैं । धम्मपद अट्ठकथामें 'पंडरंग पव्वज्ज पव्वजित्वा' पद आया है। इसका अर्थ ही यह है कि पण्डरङ्ग भिक्षुको बौद्ध भिक्षुकी दीक्षा दी जाती थी। उपरोक्त चर्चासे यह स्पष्ट है कि पञ्चतन्त्रके ३.७६ श्लोकोंमें श्वेतभिक्षु शब्दका अर्थ श्वेताम्बर साधु नहीं है । ये श्वेत भिक्षु अजैन सम्प्रदायके भिक्षु होते थे जिन्हें पण्डरभिक्षु , पण्डरङ्ग, पण्डुरङ्ग और पण्डरङ्ग परिव्राजक कहा जाता था। पालि साहित्यमें पडरङ्गको ब्राह्मण जातीय पाखण्ड कहा गया है जबकि निशीथचूणिके समान प्राचीन जैन ग्रन्थोंमें पण्डरङ्गको आजीवक बताया गया है। इसमें क्या सत्य है, यह एक पृथक् अनुसन्धानका विषय है। पण्डरङ्ग श्वेतभिक्षु आजीवक थे या ब्राह्मण जातीय थे, इसके निर्णयके लिए विशेष प्रमाणोंकी आवश्यकता है। - - २०४ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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