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________________ मनुष्य के शरीर-निर्माण और व्यक्तित्व निर्माणकी दृष्टिसे माता-पिता का क्या अनुदान रहता है, इस दृष्टिसे ठाण (३-४९४-४९५) द्रष्टव्य है । आगम-ग्रन्थोंमें निर्दिष्ट गर्भाधान कृत्रिम गर्भाधान और गर्भसंक्रमणकी प्रक्रियाको जानने वाला व्यक्ति वैज्ञानिक उपलब्धि “परखनली शिशु" पर आश्चर्यचकित नहीं होता। यह निर्विवाद है कि न्यूटन द्वारा उद्घोषित पृथ्वीके गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्तकी प्रस्थापनासे पूरा वैज्ञानिक जगत् उपकृत हुआ है, लेकिन परम वैज्ञानिक भगवान् महावीरने विभिन्न पृथिवियोंके गुरुत्वाकर्षणके प्रभाव क्षेत्रका तथा अन्य पृथिवियोंके निवासियों पर होने वाले उसके प्रभावका प्रतिपादन आज से २५०० वर्ष पहले ही कर दिया था। (देखें-अङ्गसुत्ताणि भाग २ भगवती सू २।११९) इसका अध्ययन अन्तरिक्ष अनुसंधान कार्यमें अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है। जीव विज्ञान, गणित और ज्योतिष शास्त्र की सामग्री तो आगमों में भरी पड़ी। साथ ही उस समय का भारतीय रसायन-शास्त्र और चिकित्सा विज्ञान कितनासमृद्ध और विकसित था इसकी भी भरपूर सामग्री उपलब्ध होती है। मनोविज्ञान और परामनोविज्ञानके बीज तो यत्र-तत्र बिखरे पड़े ही है पर अनेकत्र उन पल्लवित और पुष्पित रूप भी देखने में आता है वहां तात्त्विक विषयोंके विश्लेषणके साथ-साथ साहित्यिक और मनोवैज्ञानिक तथ्य भी गम्भीरताके साथ विश्लेषित हुए हैं । इस क्रमसे मनुष्य की शाश्वत मनोभूमिकाओं, मानवीय वृत्तियों तथा वस्तु सत्यों का मार्मिक उद्घाटन हुआ है।' वृक्ष, फल, वस्त्र आदि व्यावहारिक वस्तुओंके माध्यमसे मनुष्यकी मनः स्थितियोंका जैसा सूक्ष्म विश्लेषण आगमोंमें हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है । स्वर-विज्ञान और स्वप्न-विज्ञानकी प्रचुर सामग्री प्राप्त होती है । जैसे आज मनोविज्ञान व्यक्तिकी आकृति, लिपि और बोलीके आधार पर उसके व्यक्तित्वका अङ्कन और विश्लेषण करता है, वैसे ही आगमों में व्यक्तिके रङ्गके आधार पर उसके स्वरकी पहचान बताई है । जैसे श्यामा स्त्री मधर गाती है। काली स्त्री परुष और रूखी गाती है । केशी स्त्री रूखा गीत गाती है। काणी स्त्री विलम्बित गीत गाती है। अन्धी स्त्री द्रुत गीत गाती है। पिंगला स्त्री विस्वर गीत गाती है। अनयोगद्वारमें भी व्यक्तिकी ध्वनि और उसके घोषके आधार पर उसके व्यक्तित्वका बहुत ही सुन्दर विश्लेषण किया गया है। शब्द विज्ञानकी दृष्टिसे ठाणं ( १० के २,३,४,५) सूत्र विशेष मननीय है। जिनमें दस प्रकारके शब्द, दस प्रकारके अतीतके इन्द्रिय-विषय, दस प्रकारके वर्तमानके इन्द्रिय-विषय तथा दस प्रकारके अनागत इन्द्रिय-विषयोंका वर्णन है । ये इस बातकी ओर सङ्केत करते हैं कि जो भी शब्द बोला जाता है, उसकी तरङ्गे आकाशीय रिकार्ड में अङ्कित हो जाती है । इसके आधार पर भविष्यमें उन तरङ्गोंके माध्यमसे उच्चारित शब्दोंका सङ्कलन किया जा सकता है। जैन-आगमोंका कथा-साहित्य भी समृद्ध है। ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरोपपा तिकदशा और विपाकश्रुत-ये अङ्ग तो विशेषतः कथाओंके माध्यमसे ही अपने कथ्यको प्रस्तुत करते हैं । उत्तराध्ययन, राजप्रश्नीय, भगवती आदिमें भी तत्त्व प्रतिपादनके लिए कथाओंका आलम्बन लिया गया है। १. ठाणं ३२२५, २६७ २. ठाणं ४।१२. ३४. १०१. १०७ ३. ठाणं ७/४८ - २०० - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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