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________________ ५. पित्रीय वृत्ति वात्सल्य, सुकुमार भावना ६. यूथ वृत्ति एकाकीपन तथा सामूहिकताभाव ७. विकर्षण वृत्ति जुगुप्सा भाव, विकर्षण भाव ८. काम वृत्ति कामुकता ९. स्वाग्रह वृत्ति स्वाग्रहभाव, उत्कर्ष भावना १०. आत्मलधुता वृत्ति हीनता भाव ११. उपार्जन वृत्ति स्वामित्व भावना, अधिकार भावना १२. रचना वृत्ति सृजन भावना १३. याचना वृत्ति दुःख भाव १४. हास्य वृत्ति उल्लसित भाव कर्मशास्त्रके अनुसार मोहनीय कर्मकी अठाइस प्रकृतियाँ हैं और उसके अठाईस ही विपाक हैं । मूल प्रवृत्तियों और मूल संवेगोंके साथ इनकी तुलना की जा सकती है । मोहनीय कर्मके विपाक मूल संवेग १. भय भय २. क्रोध क्रोध ३. जगुप्सा जुगुप्सा भाव, विकर्षण भाव ४. स्त्री वेद ५. पुरुष वेद कामुकता ६. नपुंसक वेद ) ७. अभिमान स्वाग्रहभाव, उत्कर्ष भावना ८. लोभ स्वामित्व भावना, अधिकार भावना ९. रति उल्लसित भाव १०. अरति दुःखभाव ___ मनोविज्ञानका सिद्धान्त है कि संवेगके उद्दीपनसे व्यक्तिके व्यवहारमें परिवर्तन आ जाता है । कर्मशास्त्रके अनुसार मोहनीय कर्मके विपाकसे व्यक्तिका चरित्र और व्यवहार बदलता रहता है । प्राणी जगतकी व्याख्या करना सबसे जटिल है। अविकसित प्राणियोंकी व्याख्या करने में कुछ सरलता हो सकती है। मनुष्यकी व्याख्या सबसे जटिल है। वह सबसे विकसित प्राणी है। उसका नाड़ीसंस्थान सबसे अधिक विकसित है। उसमें क्षमताओंके अवतरणकी सबसे अधिक संभावनाएँ हैं। इसलिए उसकी व्याख्या करना सर्वाधिक दुरूह कार्य है। कर्मशास्त्र, योगशास्त्र, मानसशास्त्र (साइकोलोजी), शरीरशास्त्र (एनेटोमी) और शरीरक्रिया शास्त्र (फिजियोलाजी) के तुलनात्मक अध्ययनसे ही उसको कुछ सरल बनाया जा सकता है। मानसिक परिवर्तन केवल उद्दीपन और परिवेशके कारण ही नहीं होते। उनमें नाड़ी-संस्थान, जैविक सिद्युत्, जैविक रसायन और अन्तःस्रावी ग्रन्थियोंके स्रावका भी योग होता है। ये सब हमारे स्थूल शरीरके अवयव हैं। इनके पीछे सूक्ष्म शरीर क्रियाशील होता है और उसमें निरंतर होनेवाले कर्मके स्पंदन परिणमन या परिवर्तनकी प्रक्रियाको चल रखते हैं । परिवर्तनकी इस प्रक्रियामें कर्मके स्पंदन, मनकी चंचलता, -११५ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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