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________________ १७०. १७१. १७२. १७३. १७४. १७५. १७६. १७७. १७८. १७९. १८०. १८१. १८२. १८३. १८४. १८५. १८६. १८७. ३१ जुलाई ६९ १४ अगस्त ६९ २३ अक्टूबर ६९ २० नवम्बर ६९ १६ जनवरी ६९ २३ जनवरी ६९ २० जनवरी ६९ २० जनवरी ६९ ९ अप्रैल ७० ४ जून ७० २० अगस्त ७० ५ नवम्बर ७० २६ नवम्बर ७० १५ जनवरी ७० १२ फरवरी १९ फरवरी ७० ५ मार्च ७० ७ जनवरी ७१ १० जून ७१ २२ जुलाई १८ नवम्बर ७१ ६ मार्च ७२ ३० जुलाई ७२ ३ अगस्त ७२ २४ अगस्त ७२ ३१ अगस्त ७२ १६ नवम्बर ७२ ३० नवम्बर ७२ १४ जून ७३ १८ जनवरी ७३ ८ मार्च ७३ १२ अप्रैल ७३ २६ अप्रैल ७३ १४ जनवरी ७४ ३१ जनवरी २१ फरवरी दो उल्लेखनीय घटनाएँ जैनधर्म और आधुनिक विज्ञान दि० जैन सम्मेलन जनगणना आचरणमें ह्रास क्यों? समयकी माँग तीर्थरक्षाके लिए एक अ० भा० सम्मेलनकी आवश्यकता सराक जातिका धर्मप्रेम स्त्री और पुरुषका चिन्तनीय सम्पर्क आगमका यह अपलाप क्यों ? जैन लिखाओ, जैन बनो २५०० वीं निर्वाण जयन्ती कब से ? बुन्देलखण्डके तीर्थरक्षकोंसे कन्या किसे देना चाहिये ? एक पंथ दो काम जयपुर में बाहुबली महोत्सव बुन्देलखण्ड प्रान्तीय तीर्थक्षेत्र कमेटी होनी चाहिये २५०० में निर्वाणोत्सवक स्मृतिमें कथनी और करनीमें इतना अन्तर क्यों ? नारी की उठती हुई स्थिति महाराष्ट्र प्रदेशमें भावी पीढ़ी की चिन्तनीय स्थिति मुनिमार्ग की बिगड़ती स्थिति हस्तिनापुरके उद्यानमें गृहस्थ भी आरातीय होते थे क्रियात्मक अहिंसा प्रचार की आवश्यकता करुणाभाव और मोह क्या भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता बढ़ रही है ? ब्रह्मदेवसूरि का ब्रह्माणुव्रत धार्मिक प्रवास भगवान् महावीर के चरित की समस्या एक विचारणीय सुझाव अन्य राज्य भी गुजरातका अनुकरण करें संघके सम्बन्धमें संघके प्रस्तावों पर एक दृष्टि १८८. १८९. १९०. १९१. १९२. १९३. १९४. १९५. १९७. १९८. १९९. २००. २०१. २०२. २०३. २०४. २०५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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