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________________ ६२. ६३. ६४. ६५. ६६. ६७. ६८. ६९. ७०. ७१. ७२. ७३. ७४. ७५. ७६. ७७. ७८. ७९. ८०. ८१. ८२. ८३. ८४. ८५. ८६. ८७. ८८. ८९. ९०. ९१. ९२. ९३. ९४. ९५. ९६. ९७. Jain Education International २९ सितम्बर ४४ ५ अक्टूबर ४४ १२ अक्टूबर ४४ ३० नवम्बर ४४ ७ दिसम्बर ४४ २१ दिसम्बर ४४ २५ जनवरी ४५ ८ फरवरी ४५ १५ फरवरी ४५ ८ मार्च ४५ १५ मार्च ४५ २२ मार्च ४५ ५ अप्रैल ४५ २८ नवम्बर ५७ २४ अप्रैल ५८ १७ जुलाई ५८ १४ अगस्त ५८ ४ दिसम्बर ५८ ११ सितम्बर ५८ ३० अक्टूबर ५८ २२ जनवरी ५९ ५।१२ फरवरी ५९ १९ मार्च ५९ २० अक्टूबर ६० १७ नवम्बर ६० १ दिसम्बर ६० ८ दिसम्बर ६० १५ दिसम्बर ६० ५ जून ६१ १९ जून ६१ २६ जून ६१ २ फरवरी ६१ १६ फरवरी ६१ ९ मार्च ६१ १२ १६ मार्च ६ अप्रैल ६१ अहिंसा प्रचारका एक अवसर जैनोंकी कानूनी स्थिति यह अंधेरा क्यों ? तीर्थक्षेत्रोंकी समस्या प्रान्तीय संगठनोंकी आवश्यकता मधुवनमें जहरीले पानीसे सावधान फिर वही वितण्डा बहिष्कारका समर्थन किन्तु प्रकारान्तरसे विद्वानोंसे प्रो० हीरालालजीके उत्तर विद्वत् परिषद्का अधिवेशन शिखरजीका पानी आज जैनत्व मिट रहा है बम्बईकी दुःखद घटना आज द्रव्य ही सब कुछ है रात्रि भोजन छोड़िये हमारी शक्तिका हास बालिकाओंका स्तुत्य साहस दिया तले अंधेरा समय रहते सावधान हो जाना ही हितकर है दोषी कौन, निन्दक या अन्धभक्त यह जैन सन्देशका नहीं, जैनधर्मका बहिष्कार है जबलपुर काण्ड पर एक दृष्टि जैनों और हिन्दुओंमें एकता सच्ची और खरी बातें जनगणनाके सम्बन्धमें अतिशय क्षेत्र महावीरजी जातीयताका विष एकता और संगठनकी बातें जैनोंसे जैनधर्म छूटता जाता है सार्वजनिक क्षेत्रमें जैनधर्म कैसा होना चाहिये ? मूर्तिपूजक होना गकी वस्तु विवाह आदि अवसरों पर रात्रिभोजन बन्द कीजिये तीर्थ-यात्रा विवाह नहीं सौदेबाजी शाकाहारके प्रचारकी आवश्यकता - ८९ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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