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________________ मुनि रूपचन्द्र ने भी इन शब्दों में इस कुत्सित मनोभाव का प्रत्याख्यान किया है मजहब के नाम पर राष्ट्र और मत और बड़ी-बड़ी दीवारे खड़ी करने की तैयारी, जाति और भाषा के नाम पर आदमी से आदमी के दिल में घृणा पैदा करना । ' तेरापंथ सम्प्रदाय और नयी कविता ये कवि अपने आशय की व्याख्या के लिए अन्य धर्मों के पुराख्यानों का सान्दर्भिक प्रयोग करने में भी नहीं चूके हैं । (७) उधार की संस्कृति से इन्कार - "स्वत्व" मानव और राष्ट्र को गरिमामय बनाता है, पर जब हम उधार के प्रकाश को ही श्रेयस् समझकर अपने प्रति हीन भाव जतलाते हैं, तो कवि इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता। उधार के प्रकाश पर ही जिन्दा रहने की अपेक्षा उसे "चाँद का अन्धापन" प्रतीकात्मक दृष्टि से अधिक पसन्द है ।" पश्चिम के नक्काल प्रभाव से प्रभावित भारतीय युवा पर यह गहरा व्यंग्य भी है । साध्वी मंजुला भी कहती है अच्छा किसी उधारे धन से । इतराते कुत्सित यौवन से ।। खुद का एक नया पैसा भी इस कुटिया को मत बहकाओ Jain Education International ६२३ (5) आराधना का समर्पित संगीत- - इन सभी कवियों ने अपने आराध्य के प्रति संगीतभरी आस्थाएँ व्यक्त की हैं। पर आराध्य कौन है, यह सिवाय भूमिकाओं के कहीं व्यक्त नहीं है । अतः मूलरूप में इसे ईश्वरीय शक्ति और भक्ति के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए कुछ कविताएं आचार्य तुलसी को लेकर निवेदित हुई हैं। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा का 'सरगम' संकलन एकान्तिक रूप में इसी समर्पण का छन्दोबद्ध संगीत है, उसके प्रति आस्था का आवेग है। देव तेरी इस अतीन्द्रिय चाँदनी का राग, भर रहा है मनुज में शुभ्रतम अनुराग । १. अं० २१ २. अंधा चांद, भूमिका से ३. प्राथमिकी, गूंजते स्त्रर बहरे कान ४. अंधा चांद की भूमिका से - ( सरगम, पृ० ३७ ) (e) काव्यमूल्य : शिल्प का नया रचाव - तेरापंथ के इन कवियों की साधना प्रश्न चिन्हों से घिरी मानवता के साथ जुड़कर नये बोध एवं शिल्प में अभिव्यक्त हुई है । कवि अनुभूतियों की व्यक्ति के लिए नये प्रतीकों और शब्दों का परिधान जुटाते हैं, इसलिए ये कविताएँ शब्द कल्लोल नहीं हैं । "अनुभूति का सोता शब्दों में फूट पड़े, वह शब्दों मैंने शब्दों का जाल रचा है और न तुकों की प्रतिवद्धता जनसाधारण से है। इसी वास्ते की कारा का बन्दी न बने, इसलिए मैंने उन्मुक्त वातावरण दिया है-न अपेक्षा की है, उसे सहज गति से बहने दिया है ।" इन कविताओं की घुमावदार शिल्प और क्लिष्ट रचना प्रक्रिया से बचकर सीधी किन्तु बेबाक अभिव्यक्ति को प्रेय माना गया है । हिन्दी की नयी कविता - भाव और भाषा-शैली, दोनों दृष्टियों से जनसाधारण से बहुत दूर है । अतः कवि जनसाधारण की भाषा और बोधगम्य प्रतीकों का ही उपयोग करता है । अनेक काव्य पंक्तियाँ तो पाठक को संवाद की स्थिति से जोड़ देती हैं | जनसंवादी स्वर एवं भाषा, अभिवंदनीय इसलिए हैं कि वे अपनी सारी बुनावट और सम्प्रेषण में पाठक के प्रति प्रतिबद्धता प्रकट करते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि कवि कला के प्रति गैर ईमानदार रहे हैं, अपितु कला के मोल पर सम्प्रेषण को कत्ल नहीं किया है । चेहरा एक हजारों दर्पण, पृ० ३१) For Private & Personal Use Only • www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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