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________________ आगम-पाठ संशोधन : एक समस्या, एक समाधान ६१५ . ............. ........ .. ......... " - . -. -. -. -. -. -. - . -. -. -. - . -. - . -. ८।१५४ एवं वुत्ता समाणी के स्थान पर एवं व ८।१३५ सक्कं सक्का १६६७% गंधट्टएणं , गंधोद्ध एणं, गंधुदएणं, गंधदूएणं ५।४० अणगारसहस्सेण सद्धि , सहस्सेणं अणगाराणं, सहस्सेणं अणगारेणं । ८७४ निव्वोलेमि निच्छोल्लेमि ७७५ तुमं णं जा , तुम णं जाव ८७२ भुमरासिरं , भुभलसिरं, संभलसिरं बुभलं, कुन्तलं । ८७२ कोट्टकिरियाण कोटिकिरियाण १६७ संसारियासु संचारियासु १८०५१ परब्भाहते परिब्भमंते, परब्भमंते, परब्भए । ८।३५ जम्मणुस्सवं जम्मणं सव्वं ८।१८ सो उ जीवो, एसो। १३।३१ वेज्जा विज्जा २१७१ गच्छामि इच्छामि १३३१७ मत्तछप्पय महच्छप्पय १२।१३ ईसर , राईसर २. आचारांग ६१७२ आयरिय-पदेसिए आरिय-देसिए ६७३ दइया चियत्ता ६।६६ सिलोए लोए ६९ वीरो ८।६१ णिस्सेयसं णिस्सेस, निस्सेसियं ८.१८ आसीणे णेलिसं उदासीणो अणेलिसो ११३५ विजहत्तु विसोत्तियं तिन्नोहसि विसोत्तियं, विजहित्तु पुव्व संजोगं २।१३४ कासं कसे कामं कामे २२१५७ दिट्ठ-पहे दिट्ठ-भवे २८ वीरे ३।३७ दिट्ठ-भए दिट्ठ-पहे ३।६६ सहिए दुक्खमत्ताए सहिते धम्ममादाय ३१७७ उवाही उवही ४।२५ पावादुया , समणा माहणा ५।६६ पलीबाहरे , पलिबहिरे, पलिबाहरे, बलिबादिरे । प्रस्तुत विवरण के सन्दर्भ में आगम-पाठों की वस्तुस्थिति का सही-सही ज्ञान हो जाता है। सत्य का शोधक अत्यन्त नम्र होता है। वह शोध करता हुआ नए-नए सत्यों का आत्मसात् करता जाता है। वह एक ही बिन्दु पर खड़ा नहीं रहता। एक-एक बिन्दु को पार कर वह सारे समुद्र को तैर जाता है। यदि वह एक बिन्दु पर पहुंचकर धीरो धीरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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