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________________ ०३४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड 1000... .. ... ... .. . . . . . ...... . . ... . . . ........ . .. उस झौंपड़ी से चिनगारी इक्कीस मील और बाकी बात नहीं है, सभी अपनी-अपनी टार्च सम्भालो और थी। अतः चिनगारी पहुँचना भी जरूरी था, इसलिए जपना शुरू करो हमारे आराध्य देव भिक्षु स्वामी का आपने पैदल चलने का निर्णय लिया और पैदल यात्रा जाप । सभी ने तन्मय होकर स्वामी को जपना प्रारम्भ शुरू की। आपके इस अटूट साहस को देखकर साथ किया कि कुछ ही क्षणों में आवाज गायब थी और शेर न वाले सभी साथी पैदल चलने लगे। भिक्ष स्वामी का मालूम कौन से रास्ते का राही हो गया। नाम आपके होठों पर मुखरित था । ये हैं आपके अटल नियम और दृढ़ आस्था के अचानक शेर के दहाड़ने की कर्णभेदी आवाजें सुनाई परिचायक सूत्र ! एक बजे के लगभग आप सकुशल साथियों देने लगीं। यामिनी के नीरव वातावरण में ऐसा लग रहा सहित इक्कीस मील की यात्रा कर चिनगारी पहुंचे। था, मानो शेर कहीं बिल्कुल नजदीक में ही है। सभी आप अपनी शक्ति में विश्वास रखते हैं और अपने पौरुष के हृदय भय से प्रकंपित थे, उपस्थित सभी साथी एक से खेलते हैं, किसी भी कार्य को इसलिए नहीं छोड़ देते कि दूसरे की तरफ निहारते हुए सोचने लगे, अब क्या होगा? यह दुरूह है । असाध्य को साध्य करने के संस्कार आपको पैरों की गति मंथर पड़ने लगी। जन्म से प्राप्त हैं। तब सबको सावधान करते हुए कहा-डरने की कोई 00 मन्त्र की शक्ति - श्री अशोककुमार भण्डारी, पेटलावद पांच दिसम्बर सन् १९६७ को दिन के ठीक १ बजे परिस्थिति आये तो इस मन्त्र को याद करना, सभी खाना खाकर छात्रावास के सभी विद्यार्थी आराम कर रहे कठिनाइयों का समाधान हो जावेगा । इस मन्त्र को थे। उस वक्त मेरी उम्र करीबन १७ वर्ष की थी कि सभी विद्यार्थियों ने याद किया, मन्त्र इस प्रकार थाअचानक छात्रावास की घण्टी बजी और यह आवाज सुनाई अरिहन्ते सिद्ध धम्म सरणम् सु पवज्जामी। दी कि सभी विद्यार्थी सभा-भवन में एकत्रित होइए । लगभग विघ्न हरण मंगलमय तेरा स्मरण सदा अन्तर्यामी । १५ मिनट के दौरान सभी छात्र अपनी कक्षा के अनुसार आज यह मन्त्र मेरी हरेक तकलीफ का एकमात्र क्रमबद्ध एवं अनुशासनपूर्वक कतार में बैठ गये। सभा समाधान है। भवन के मुख्य स्टेज पर भाव-पूर्ण मुद्रा में निडर एवम् साहसी व्यक्ति आदरणीय काका साहब बैठे हुए थे। कुछ ये सब हमारी सन्तानें हैं देर पश्चात् काका साहब ने कहा-आज मैं बगीचे (जहां सन् १९६८ में जब श्री केसरीमलजी सुराणा पंजाब में पर आदर्श निकेतन का छात्रावास का खेत एवं बगीचा है) चन्दा लेने के लिये गये तब एक भाई ने उनसे पूछा-सुराणा से आ रहा था। मेरे साथ भेरुलालजी जैन गृहपति भी साहब आपके कितने सन्तानें हैं । तब सुराणा साहब एवं थे। दिन के ठीक १२ बज चुके थे कि जंगल में नदी के माताजी ने कहा-श्रीमान् हमारे तीन सौ पचास पुत्र एवं किनारे हमें कुछ डरावनी आवाजें सुनाई दीं । उस वक्त १६८ पुत्रियाँ हैं जो कि छात्रावास में पढ़ रहे हैं । ये सब मैंने एक मन्त्र का जाप करना शुरू किया और थोड़ी हमारी ही तो सन्तान हैं । आपका बच्चों पर कितना स्नेह, ही देर में हम उन डरावनी परिस्थितियों से मुक्त हुए और कितना अपनत्व और माताजी की कितनी ममता हम आपने वह मन्त्र हम सभी विद्यार्थियों को उसी वक्त लोगों पर थी जो आज तक हमारी स्मृति-पटल पर विद्यमान सिखाया और कहा, किसी वक्त कभी भी कोई बुरी है। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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