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________________ ५८४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड .-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.. धर्म की तरह मुक्ति के मंत्र स्वरूप चरणकमलों की धूल से अज्ञानरूपी तम समूह को नष्ट करने वाले सूर्य की तरह तप-तेज-युक्त जसदेवसूरि थे।' अपने रूप से कामदेव की जीतने वाले तथा मन से सकल गुणों के धारक तथा समस्त लोगों को आनन्दित करने वाले प्रद्युम्नसूरि हुए। सघन बुद्धि के द्वारा दुर्गम काव्यों को जानने वाले तथा आत्मा की तरह शास्त्रों को जानने वाले एवं मदरूपी कामदेव को खण्डित करने वाले आचार्यप्रवर मानदेव थे। . श्रेष्ठ कीति फैलाने वाले, मनोहर शरीरधारी, महामति कुशल, दर्शन मात्र से जिनेन्द्र प्रवचनों में प्रविष्ट लोगों को आनन्दित करने वाले, श्रेष्ठ शास्त्रों के अर्थ को प्रकट करने वाले, सरस्वती के समान मुख में स्थित कुशल वचनों वाले तथा समस्त लोक में विख्यात श्रीदेवसूरि थे। उनके ही गच्छ में उद्योतनसूरि के श्रेष्ठ शिष्य तथा गुणरत्नों के खजाने उपाध्याय अंबदेव हुए। पूर्णिमा के चन्द्रमण्डल की तरह सौम्य शरीर एवं संयमित चित्त के धारी श्रेष्ठ मति वाले मुनि चन्द्रसूरि के धर्म-सहोदर देवेन्द्रगणि के द्वारा उनकी अनुमति से उनसे शिष्य के शब्दों द्वारा संक्षेप में अक्षरबन्ध (कथा) के रूप में यह कथा कही गयी है। इस प्रकार आचार्य नेमिचन्द्रसूरि की गुरु-परम्परा निम्न प्रकार स्पाट होती है : देवसूरि उद्योतनसूरि जसदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि उपाध्याय अंबदेव देवेन्द्रगणि (नेमिचन्द्रसूरि) सबसे प्रथम देवसूरि हुए। देवसूरि के ४ शिष्य हुए-उद्योतनसूरि, जसदेवसूरि, पद्युम्नसूरि, आचार्य मानदेवसूरि । ये चारों समकालीन थे। उद्योतनसूरि के उपाध्याय अंबदेव हुए । अंबदेव के देवेन्द्रगणि (नेमिचन्द्रसूरि) हुए थे। (ख) समणगुणदुव्वहधरा धारण धोरेय भावमणुपत्तो। सिरिउज्जोयणसूरि सोमत्तणु सोमदिट्ठी व ॥८॥ १. धम्मोव्व मुत्तिमंत्तो पयपंकयरेणुनासिय तमोहो । जसदेवसूरिनामो, रविव्व तवतेयला जुत्तो ॥६॥ २. दूर विणिज्जयमवणो स्वेण, मणेण सयलगुणनिलओ। आणंदियसयलजको पवरो पज्जुन्नसूरिवरो ।। १०॥ ३. निविडइमुणियदुग्गमकव्वो जोवोव्व नायसत्थत्थो। मुसुमरियमयमयणो, सूरवरो माणदेवोत्ति ॥ ११ ॥ ४. उद्दाम कित्तिसद्दो मणहरदेहो महामई कुसलो।। दसणमेत्ताणंदियजिणपदयणपविट्टलोगोवि ॥ १२ ॥ पयडियवरसत्थत्थो मुहट्टियसरस्सइव्व पडुवयणो। सिरिदेवसूरिणामो समत्थ लोगंमि बिक्खाओ ॥ १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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