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________________ अपभ्रंश साहित्य के कवियों में जानकरी अभी तक नहीं मिल सकी है, वह संक्षिप्त होने पर भी महत्वपूर्ण है। माएसर (मातेसर) और माता का नाम महाकवि धनपाल : व्यक्तित्व और कृतित्व D श्री मानमल कुदाल, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर धनपाल का प्रमुख स्थान है । यद्यपि कवि धनपाल के सम्बन्ध में विशेष पर स्वयं धनपाल ने जो परिचय अपनी कृति भविसयतका में दिया है कवि ने धक्कड़ नामक वैश्य वंश में जन्म लिया था। इनके पिता का नाम धनश्री था । धक्कडवणियाँस माएसरहु प्रणसिरदेखि सुएण विरइ कहा जाता है कि उन्हें सरस्वती का वरदान प्राप्त था १. पं० परमानन्द जैन शास्त्री २. पं० परमानन्द जैन शास्त्री पृ० १५५. Jain Education International समुभविण । सरस संभविण ॥ - भ० क० १, ४ चिन्तिय धणवाले वणिवरेण सरसइ बहुलद्ध महावरेण । कवि निश्चित ही प्रतिभाशाली विद्वान् रहे होंगे और उन्होंने अन्य रचनाएँ भी लिखी होंगी। किन्तु आज उनको खोज निकालना असम्भव-सा प्रतीत होता है क्योंकि धनपाल नाम के कई विद्वानों के उल्लेख मिलते हैं। पं० परमानन्द शास्त्री ने धनपाल नाम के चार विद्वानों का परिचय दिया है।' ये चारों ही भिन्न-भिन्न काल के विभिन्न विद्वान् हैं । उनमें से दो संस्कृत भाषा के विद्वान् तथा ग्रन्थ रचयिता थे और दो अपभ्रंश के संस्कृत के प्रथम धनपाल राजा भोज के आश्रित थे, जिन्होंने तिलकमंजरी और पाइयलच्छी ग्रन्थ की रचना १०वीं शती में की थी दूसरे धनपाल १३वीं शती के हैं। उनके द्वारा लिखित तिलकमंजरी नामक ग्रन्थ का ही अब तक पता लग पाया है। तीसरे धनपाल अपभ्रंश भाषा में लिखित बाहुबलिचरित के रचयिता हैं, जिनका समय १५वीं शती है । ये गुजरात के पुरवाड वंश के तिलक थे। इनकी माता का नाम सुहडा देवी और पिता का नाम सेठ सुहडपुत्र था। जैसा कि कहा गया है गुज्जरपुरबाड सलिलड़ सिर सुहसेठ गुणसणणिलउ । तहो मणहर छायागेहणिय सुहडाएवी णामे मणिय | तहो उवरिविाउ वदु विणयओ धणवालु वि सुउ णामेण हुआ। तहो विण्णि तणुब्भव विउलगुण संतोसु तह य हरिराज पुण ॥ - भ० क० २२, १ चौथे धनपाल भविसयतकहा कथा काव्य के लेखक धक्कड़ वंश में उत्पन्न हुए थे । धर्मपरीक्षा के कर्त्ता कवि हरिषेण भी इसी वंश के थे। धर्मपरीक्षा का रचना काल वि० सं० २०४४ है। महाकवि वीरकृत जम्बूस्वामी चरित में भी मालव देश में धक्कड़ वंश के तिलक महासूदन के पुत्र तक्खडु श्रेष्ठी का उल्लेख मिलता है ।" देलवाड़ा — बाहुबलिचरित, अन्त्य प्रशस्ति, अनेकान्त से उद्धत धनपाल नाम के चार विद्वान् कवि, अनेकान्त, किरण ७-८, पृ० ८२. अपभ्रंश भाषा का जम्बूस्वामिचरिउ और वीर, अनेकान्त, वर्ष १३, किरण ६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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