SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 925
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड ५. अकलंकाष्टक भाषा वचनिका वि० सं०.१६१५ ६ . मृत्यु महोत्सव ७. रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाषा टीका वि० सं० १९२०८. नित्य नियम पूजा वि० सं० १९२१ एक ऋषिमण्डल पूजा भी आपके द्वारा रचित बताई जाती है । इनकी भाषा का नमूना इस प्रकार है : "संसार में धर्म ऐसा नाम तो समस्त लोक कहे हैं, परन्तु शब्द अर्थ तो ऐसा जो नरक तिर्यञ्चादिक गति में परिभ्रमण रूप दुःखते आत्माकू छुड़ाय उत्तम आत्मीक, अविनाशी अतीन्द्रिय मोक्षसुख में धारण कर सो धर्म है। सो ऐसा धर्म मोल नाहीं आवे जो धन खरचि दान सन्मानादिक तै ग्रहण करिये तथा किसी का दिया नाहीं आवै जो सेवा उपासनाते राजी कर लिया जाय। तथा मदिर, पर्वत जल, अग्नि, देवमूर्ति, तीर्थादिकन में नाहीं धरया है, जो वहाँ जाय ल्याइये। तथा उपवासवत, बाह्यक्लेशादि तप में हू, शरीरादि कृश करने में हू नाहीं मिले। तथा देवाधिदेव के मंदिरी नि में उपकरणदान मण्डल पूजनादिकरि तथा गृह छोड़ वन श्मशान में बरानेकरि तथा परमेश्वर के नाम जाप्यादिकरि धर्म नाहीं पाइये है। धर्म तो आत्मा का स्वभाव है । जो पर में आत्मबुद्धि छोड़ अपना ज्ञाता द्रष्टा रूप स्वभाव का श्रद्धान अनुभव तथा ज्ञायक स्वभाव में ही प्रवर्तन रूप जो आचरण सो धर्म है।" यद्यपि गत-चार पाँच सौ वर्षों में शताधिक दिगम्बर जैन विद्वानों ने राजस्थानी हिन्दी-साहित्य के गद्य भण्डार को काफी समृद्ध किया है, उसे प्रौढ़ता प्रदान की है, उसका परिमार्जन किया है, सशक्त बनाया है तथापि स्थानाभाव के कारण यहाँ मात्र कतिपय प्रतिनिधि गद्यकारों के व्यक्तित्व और कर्तृत्व का संक्षिप्त परिचय ही दिया जा सका है। मुझे विश्वास है कि उक्त संक्षिप्त विवरण भी मनीषियों को दिगम्बर जैन गद्यकारों की ओर आकृष्ट करेगा और राजस्थान जैन ग्रन्थ भण्डारों में शोध-मनन, पठन-पाठन एवं प्रकाशन को प्रेरित करेगा। १. रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाषाटीका, पृष्ठ २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy