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________________ • ५४४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड (५) बडो नकटो है, केणो कोनी मानै । केणो कोनी माने जदि नकटो है नहीं तो आज ताई रे तो इ कोनी-पेल्ही नास्यां में नथ घल ज्याती।............ (६) बडो सचवादो है पण लूखो है। लूखो है जदि सचवादो है नहीं तो आज तांइ रे तो इकोनी-पेल्ही झूठ बोल २ पांच आंगल्यां घी में कर लेतो।........... (७) बडो धीरो है, बार २ फिर पण चूंस कोनी देवै। घूस कोनी देवं जदि बार २ फिरै । नहीं तो आज तांइ फिरतो इ कोनी । पेल्ही काम बण ज्यातो। (८) बडो स्याणो है, पण वई-खाता झूठा राखै । झूठा राखै जदि स्याणो है। नहीं तो आज ताइ रे तो इ कौनी । इनकमटेवस अफसर पेल्ही बावलो बणा देता ।............ (३) बडो भागवान है, पण पढ्योडो कोनी। पढ्योडो कोनी जदि भगवान है। नहीं तो आज तांइ रे तो इ कोनी । नोकरी री अरज्यां लियां फिरतो। (१०) बडो मस्त है, पण घर-बार री चिन्ता कोनी। चिन्ता कोनी जदि मस्त है। नहीं तो आज ताइ रे तो इ कोनी । मस्ताई कदेई सूक ज्याती। ........... (११) बडो समझदार है, पण कोई नै कैव-कवावै कोनी। कैव-कवावै कोनी जदि समझदार है । नहीं तो आज तांइ रे तो इ कोनी । पेल्ही समझदारी पूरी हो ज्याती।.........." (१२) टाबर बडो फुटरो है, पण टीकी काली है। टीकी काली है जदि फुटरो है। नहीं तो आज तांइ रे तो इ कोनी । पेल्ही टमकार लाग ज्याती।......" (१३) बडो विनीत है, पण भोलो है। भोलो है जदि विनीत है। नहीं तो आज तांइ रे तो इ कोनी । पेल्ही कान कतरण लाग ज्यातो ।....." (१४) साग रेण ने तरसतो रेवं है। सागै रह्यो कोनी जदि तरस है। नहीं तो तरसतो इ कोनी । कदकोई दूर भाग ज्यातो।........... स्फुट गद्य मारवार नौ-कोटी मारवार है। मोटी रात रा मोटा तडका। अठे आंध्यां सूझत्यां स्यूं ही जोर स्यूं चाल । ई जगत में आंख और पांख दो ही चीज हुवै । आंख नहीं हुवै तो पांख हुयां के हुवै ? और केहुवै ? दूजां ने फोडा घालै। समंदर स्यूं पाणी उठ्यो । मै बण बरस्यो । तलाव भरग्या, तलायां भरगी । खाडा भरग्या, नाड्यां भरगी। वे सब सवार्थी हा । जितरो चाइजो हो वित्तो ले लियो, बाकी रं ने दियो धरम-धक्को । पाणी रो पूर आग सरक्यो। कठेई ठोड कोनी मिली। जद वो पूर रोतो-रोतो समंदर कने गयो। वो वीरै पाणी रो के करे, आगेइ भरयो पड़यो । तो भी वीने आपरे खोले में ले आंसू पूंछया। नेठ आपरो आपरो हुवे ने परायो परायो। उपसंहार तेरापंथ संघ के राजस्थानी गद्य साहित्य का मैंने एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया है। इस संघ के राजस्थानी साहित्य पर अभी पर्याप्त कार्य नहीं हुआ है । अभी दो दशक पूर्व तक यह साहित्य प्रकाशित भी नहीं था । अतः विद्वानों के लिए उसकी उपलब्धि दुर्लभ थी। वि० सं० २०१८ में तेरापंथ का द्विशताब्दी समारोह मनाया गया। उस अवसर पर तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का पद्य साहित्य 'भिक्ष ग्रन्थ रत्नाकर', भाग १ भाग २ के रूप में प्रकाशित हुआ। उसका ग्रन्थमान लगभग ३५ हजार पद्य परिमाण है। किन्तु श्रीमज्जयाचार्य का विशाल राजस्थानी गद्य-पद्य साहित्य अभी भी अप्रकाशित है। उसके प्रकाशित होने पर मैं मानता हूँ कि राजस्थानी साहित्य की श्रीवृद्धि होगी, साथ-साथ अनेक विद्वान् इस ओर आकृष्ट होकर अपनी राजस्थानी साहित्यिक कृतियों पर अहमहमिकथा कार्य करने के लिए उद्यत होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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