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________________ . ५२२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड .......... ............................................................ को उद्दीप्त करने के लिए प्रकृति-चित्रण भी इन रचनाओं में सघन रूप में मिलता है। मासों पर आधारित जैन साहित्य की यह विधा लोक साहित्य से ग्रहीत है। बारहमासा का वर्णन प्राय: आषाढ़ मास से आरम्भ किया जाता है । जैन कवियों ने बारहमासा, छमासा अथवा चौमासा काव्य-परम्परा के अन्तर्गत अनेक कृतियाँ लिखी हैं, यथा-नेमिनाथ बारमासा चतुष्पदिका (विनयचन्द्रसूरि),' नेमिनाथ राजिमति बारमास (चारित्रकलश)। जैन-रास, चौपाई, फागु-संज्ञक रचनाओं में इन कवियों ने यथा-प्रसंग बारहमासा आदि के मार्मिक चित्र प्रस्तुत किये हैं । कुशललाभ की माधवानल कामकंदला, अगड़दत्त रास, ढोला माखणी चौपई, स्थूलिभद्र छत्तीसी, भीमसेन हंसराज चौपई आदि रचनाओं से इनके श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं । (११) विवाहलो, विवाह, धवल, मंगल-जिस रचना में विवाह का वर्णन हो, उसे विवाहला और इस अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को धवल या मंगल कहा जाता है। विवाह-संज्ञक रचनाओं में जिनेश्वर सूरिकृत संयमश्री विवाह वर्णन रास एवं जिनोदय सूरि विवाहला अब तक प्राप्त रचनाओं में प्राचीनतम हैं तथा धवल-संज्ञक रचनाओं में जिनपति सूरि का धवलगीत प्राचीनतम माना गया है। इन नामों से सम्बन्धित अन्य रचनाएँ हैं-नेमिनाथ विवाहलो (जयसागर), आर्द्र कुमार धवल (देपाल), महावीर विवाहलउ (कीतिरत्न सूरि), शान्तिविवाहलउ (लक्ष्मण), जम्बू अंतरंग रास विवाहलउ (सहजसुन्दर), पार्श्वनाथ विवाहलउ (पेथो), शान्तिनाथ विवाहलो धवल प्रबन्ध (आणन्द प्रमोद), -सुपार्श्वजिन-विवाहलो (ब्रह्मविनयदेव)। (१२) वेलि-रचना-प्रकार की दृष्टि से वेलि हिन्दी के लता, वती आदि काव्य रूपों की तरह है। इसमें भी विवाह-प्रसंग का ही चित्रण किया जाता है। चारण कवियों द्वारा रचित कृतियों में वि० सं० १५२८ के आसपास रचित बाछा कृत चिहुँगति वेलि सबसे प्राचीन कही जाती है। अन्य महत्त्वपूर्ण जैन-वेलियाँ हैं-जम्बूवेलि (सीहा), गरभवेलि (लावण्यसमय), गरभवेलि (सहजसुन्दर), नेमि राजुल बारहमासा बेलि (वि० सं० १६१५), स्थूलिभद्र मोहन वेलि (जयवंत सूरि) जहत पद वेलि (कनकसोम) इत्यादि । (१३) मुक्तक काव्य-राजस्थानी जैन मुक्तक काव्य का अध्ययन धार्मिक नीतिपरक एवं इतर धार्मिक शीर्षकों में किया जा सकता है। धामिक साहित्य के अन्तर्गत जैन कवियों ने गीत, कवित्त, तीर्थमाला, संघवर्णन, पूजा, विनती, चैत्य, परिपाटी, मातृका, नमस्कार, परभाति, स्तुति, स्तोत्र, मूंदड़ी, सज्झाय, स्तवन, निर्वाण, पूजा, छंद, चौबीसी, छत्तीसी, शतक, हजारा आदि नामों से की है। इन रचनाओं में तीर्थंकरों, जैन महापुरुषों, साधुओं, सतियों, तीर्थों आदि के गुणों का वर्णन किया जाता है । दुर्गुणों के त्याग और सद्गुणों के ग्रहण करने के गीत तथा आध्यात्मिक गीत भी धार्मिक मुक्तक-काव्य की विषय-वस्तु है । कुछ उल्लेखनीय रचनाएँ हैं-चौबीस जिनस्तवन, अजितनाथ स्तवन विनती, अष्टापद तीर्थ बावनी, चतुरविंशतीजिनस्तवन, अजितनाथ विनती, पंचतीर्थक र नमस्कारस्तोत्र, महावीर वीनती, नगर १. प्राचीन गुर्जर काव्य-संग्रह २. गुजराती साहित्य ना स्वरूपो, पृ० २७६ ३. सं० भंवरलाल नाहटा, ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ४. डा० माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० २४४ ५ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ० ४०० ३. जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ८६७ जैन सत्यप्रकाश, अंक १०-११, वर्ष ११, क्रमांक १३०-३१ । ५. डा० माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० २४३ है. जैन धर्म प्रकाश, वर्ष ६५, अंक २ (हीरालाल कावडिया का लेख) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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