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________________ अपभ्रंश चरिउ काव्यों की भाषिक संरचनाएँ ५०६ -.-.-.-. -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-. -.-.-.-.-.-.-. -.-.-. -. -. -. -.-.-.-. -.-.-. -... जिम............ तिम............ यह कारण-कार्य की सूचक संरचना भी होती है और अलंकार (उपमा) की सूचक भी। (७) सातवीं संरचना है जिसमें विशेषण उपवाक्यों का आवर्तन होता है विशेषण उपवाक्य, ....."+"...."वि० उपवाक्य,....."+कर्ता प्रतीक रूप में+......"क्रिया । (८) आठवीं संरचना है-लघु उपवाक्यों के ग्रन्थनवाली । इसमें अनेक संरचनाएँ मिश्रित होती हैं (क) कर्ता+सहायक क्रिया-को हउं । (ख) कर्म+क्रिया-१. जीविउ धिगत्थु । २. संसारु असार । ३. णय दंत । इस प्रकार संरचनाओं के आकलन से अपभ्रंश चरिउकाव्यों के कथ्य का वैशिष्ट्य तो उद्घाटित होता ही है, रचयिता-मानस भी उजागर होता है। अब तक इन काव्यों का अध्ययन अनेक दृष्टियों से किया गया है, संरचना और कथ्य के सम्बन्ध की दृष्टि से तथा संरचना-आवर्तन और समानान्तरता-विधान के परिप्रेक्ष्य में इन काव्यों का अध्ययन नहीं किया गया। इस दिशा में संकेत देने का एक अत्यल्प प्रयास प्रस्तुत लेख में किया गया है । आवश्यकता इस बात की है कि समग्र चरिउकाव्यों और अन्य काव्यों का इस सन्दर्भ में विस्तृत परीक्षण किया जाय। यदि ऐसा हो, तो ऐसी अनेक संरचनाओं को प्रकट किया जा सकेगा जो परवर्ती काव्य को प्रभावित करती रही हैं। यह भी ज्ञात हो सकेगा कि अपभ्रंश काव्य ने संरचना-सन्दर्भ में कितना कुछ संस्कृत शैली से ग्रहण किया है। यह अपभ्रंश-काव्य के अध्ययन की दिशा में एक नया चरण होगा। इससे अपभ्रंशकाव्य का विश्लेषण वस्तुनिष्ठता से किया जा सकेगा, क्योंकि इसका आधार भाषावस्तु होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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