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________________ अपभ्रंश चरिउकाव्यों की भाषिक संरचनाएँ ५०७. ................................................................... . .... एक और बहुप्रयुक्त संरचना-प्रकार है ........."विशेषण उपवाक्य कर्ता (प्रतीक रूप में)......""प्रमुख क्रिया। जंबुसामिचरिउ में इस संरचना का प्रयोग देखें भग्गभूवल्लिसोहो हरियाहरपल्लवारुणच्छाउं । सामियालयालिमालो अहलोकयपुफ्फपरिणामो ।। हयचंदणत्तिलयपरुई रिउरमणीरम्मजोव्वणवणेसु । कोहदुव्वायवेउ नरवणो जस्स निव्वडिओ॥ (१-११-४-५) अधिकांशतः वैशेषिक संरचनाओं का प्रयोग अपभ्रंश काव्य में हुआ है। किन्तु जहाँ सामान्य संवाद है अथवा कथा-प्रवाह है, वहाँ सीधी-सरल संरचनाएँ हैं। जहाँ व्यक्ति की मानसिकता व्यक्त की गई है, वहाँ भी यही स्थिति है और यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि व्यक्ति अलंकार-संरचनाओं में चिन्तन नहीं करता, दुःख अथवा ग्लानि के वैचारिक संदर्भ में भी अलंकार संरचनाओं का प्रयोग विरल ही है। पउमचरिउ में कंचुकी अपनी अवस्था का वर्णन करता है ।। गय दियहा ।।। जोव्वणु ल्हसिउ देव ।। ।। गइ तुट्टिय विहडिय सन्धिबन्ध ।। ।। सुणन्ति कष्ण ।। लोयण गिरन्ध ।। ।। सिरु कंपई ।। मुहे पक्खलइ वाम ।। ।। गय दन्त । । सरीर हो गट्ठ छाय ।। और कंचुकी के इन लघु, पर व्यंजक उपवाक्यों को सुनकर दशरथ को जीवन से ग्लानि हो जाती है, परिणामत: वैराग्य होता है, दशरथ की विचार तरंगें भी इसी प्रकार के लघु वाक्यों में व्यंजित हैं, पूरा पाठांश इन्हीं संरचनाओं का गुच्छ है । यद्यपि से पृथक्-पृथक् उपवाक्य से लगते हैं, पर कथ्य इन्हें परस्पर संसक्त कर देता है। ऐसी संरचना व्यक्ति के मन में होती ऊहापोह की व्यंजना हेतु समुचित होती है कं दिवसु वि होसइ आरिसाहुं। कञ्चुइ-अवत्थ अम्हारिसाहुं ॥ को हउं, का महि, कहो तणउ दव्वु । सिंहासणु छत्तई अथिरु सब्बु । जोव्वणु सरीर जीविउ धिगत्थु । संसार असारु अणत्यु अत्यु ॥ विसु विसय बन्धु दिढ बन्धणाई। घर दारइ परिभव कारणाई॥ जहाँ ऐसी स्थिति में भी अलंकार संरचना का अधिक प्रयोग होता है, वहाँ यह मानना होगा कि रचयिता ही पात्र के चरित्र में मुखर हो रहा है तब उस प्रसंग में कृत्रिमता का आभास भी स्पष्ट होगा। सम्पूर्ण चरिउ काव्यों के अवगाहन से इन काव्यों में प्रयुक्त संरचनाओं का उद्घाटन किया जा सकता है। भाषा की प्रत्येक संरचना का अपना ०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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