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________________ . ५०० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड -.-.-. -. -.-.-.-. -.-... उदात्त बनाने वाली घटनाएं. (वनवास, सीता का निर्वासन) पुष्पदंत की रामकथा में नहीं है। सीता का अपहरण है, परन्तु वह सामंतवाद की सामान्य प्रवृत्ति है, जिसमें हर ताकतवर राजा किसी भी विवाहित, अविवाहित सुन्दरी को अपने भोग की चीज समझता है । लगता है पुष्पदंत का उद्देश्य राम लक्ष्मण का वर्णन, बलभद्र और वासुदेव के परम्परागत रूप में करना है, जिसमें तामझाम और अलंकरण है। स्वयंभू रामकथा का चयन मानवीय और सांस्कृतिक मूल्यों की अभिव्यक्ति के लिए करते हैं । पुष्पदंत ने महापुराण के नाभेय चरिउ में सांस्कृतिक मूल्यों को अभिव्यक्ति दी हैं । इस बात से दोनों रामकथाओं के लेखक सहमत हैं कि राम और सीता जो कुछ दुःख झेलना पड़ा, वह पूर्वजन्म के कर्म के कारण । परन्तु उसमें उनकी सहमति का प्रश्न नहीं है क्योंकि यह तो कर्मदर्शन का सामान्य सिद्धान्त है। राम के पूर्वभवों का वर्णन स्वयंभू भी करते हैं जो सुनंदा से शुरू होता है, जिसे पिता सागरदत्त धनदत्त को देना चाहता है, जबकि माँ रत्नप्रभा श्रीकान्त को। उसका भाई वसुदेव धनदत्त पर हमला कर बैठता है, इस प्रकार कई जन्मान्तरों में राग-द्वेष की आग में झलसते रहने के बाद वे राम, लक्ष्मण और सीता के रूप में जन्म लेते हैं। यह दोनों को मान्य है कि कैकेयी ने दशरथ का वरण किया था। वर्तमान जीवन की तरह, पूर्वभवों का जीवन भी दोनों कथाओं में मेल नहीं खाता। यह नई बात है कि पुष्पदंत के अनुसार लक्ष्मण कैकेयी का बेटा है। उनकी कथा में भरत का चरित्र गौण भी नहीं है। हालांकि पुष्पदंत का प्रारम्भिक कथन है कि मैं राम और रावण के उस युद्ध का वर्णन करता हूँ जिसमें राम का यश, लक्ष्मण का पौरुष, सीता का सतीत्व, सीता का अपहरण, हनुमान का गुण विस्तार, कपटी सुग्रीव का मरण, लवण-समुद्र का संतरण, निशाचर वंश का नाश है तथा जो भक्ति से भरे हुए भरत के लिए नाना रसभावों का जनक है। पुष्पदन्त ने रामकथा प्रारम्भ करते समय, स्वयंभू और चतुर्मुख का नाम अत्यन्त आदर से लिया है, परन्तु वे उनकी कथा का अनुकरण नहीं करते । दोनों में रामकथा भविष्य कथन से जुड़ी हुई है। सीता का जन्म विवादास्पद है, आदि कवि उसे धरती की बेटी मानते हैं, संभवतः यह उसका प्रतीक नाम है। आखिर धरती की तरह उसने जीवन में क्या नहीं सहा ? दूसरे हिन्दू पुराण (महाभारत, हरिवंश आदि रामायण भी) उसे जनक की पुत्री मानते हैं। रविषेण और स्वयंभू का यही मत है। उत्तरपुराण, विष्णुपुराण, महाभागवत पुराण, कश्मीरी-तिब्बती रामायण और खोतानी रामायण में सीता रावण की पुत्री बताई गई है। दशरथ जातक (जावा) के राम, केलिंगमलय के सेरीराम के अनुसार सीता दशरथ की पुत्री है। अद्भुत रामायण के अनुसार दंडकारण्य के मुनि गृत्समद एक स्त्री की प्रार्थना पर, दूध को अभिमंत्रित कर घड़े में रखने लगे। एक दिन रावण ने उन पर विजय पाने के लिए मुनि के शरीर से तीरों से रक्त निकाल कर घड़ा भर लिया और वह उसे घर ले आया। मंदोदरी उसे पी लेती है, जिससे गर्भ रह जाता है । सीता का प्रसव होने पर वह विमान से जाकर कुरुक्षेत्र में गाड़ आती है, जो बाद में जनक को मिली। दशरथ जातक के अनुसार वाराणसी के राजा दशरथ के दो पुत्र राम पंडित और लक्ष्मण और पुत्री सीता थी। पहली रानी के मरने पर वह दूसरा विवाह करते हैं उससे भरत का जन्म हुआ। राजा ने उसे वर दे रखा था । वह भरत के लिए राज्य की मांग करती है, जब वह प्रतिदिन मांग करने लगी तो दशरथ ने राम लक्ष्मण और सीता को बारह वर्ष के लिए किसी दूसरे के राज्य में रहने के लिए कहा । जब वे हिमालय की तराई में रह रहे थे, तो नौ वर्ष में दशरथ का निधन हो गया (हालांकि भविष्यवाणी के अनुसार उन्हें १२ साल में मरना था)। भरत के अनुरोध करने पर भी रामपंडित १२ वर्ष बाद ही वापस आए। तीन वर्ष तक तृणपादुकाएँ रखकर राजकाज करते रहे। रामपंडित लौटकर सीता से विवाह करते हैं । १६ हजार वर्षों तक राज्य करने के बाद वे स्वर्ग जाते हैं। अन्त में बुद्ध कहते हैं कि उस समय शुद्धोदन दशरथ थे, महामाया (बुद्ध की माता) राम की माता, यशोधरा (सीता) और आनन्द भरत थे। मेरी दृष्टि में यह बुद्ध के जीवन की राम से संगति बैठाने के लिए गढ़ी गई कथा ज्ञात होती है, परन्तु इस कथा का सम्बन्ध वाराणसी से है। यह बात सही है कि प्रारम्भ में रामकथा सूत्र रूप में मिलती है जैसाकि प्राकृत में पहली बार रामकथा को काव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org'
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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