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________________ संस्मरणों की सौरभ - प्रो० मनोहरलाल आच्छा (राणावास) V परम अद्धय काकासा श्री केसरीमलजी सूराणा का उनको सारा घर घूमता हुआ नजर आता। आपस में स्नेह मुझे बचपन से ही मिलता रहा है। उनके सानिध्य हंसी-मसखरी काफी देर तक चलती रही। काफी समय में रहकर मुझे उन्हें निकट से देखने व परखने का बहुत बाद श्री सुराणाजी को ध्यान आया कि वे नशे में हैं। यह बार सुअवसर मिला है। उनके जीवन से सम्बन्धित सब देखकर उनको अपने आप से ग्लानि होने लगी। यह संस्मरण आज भी मेरे स्मृति-पटल पर तरोताजा है। इन तो ठीक नहीं हुआ। शादी के मण्डप में भी यदि यही संस्मरणों को जब-जब भी स्मरण करता है काकासा के हालत रही तो ठीक नहीं होगा। उन्होंने तत्काल ४-५ विराट एवं भव्य व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धा के साथ मस्तक लोटे पानी मंगाया। सारा पानी पी गये। अब उन्हें सहज ही झुक जाता है क्योंकि श्रद्धा किसी व्यक्ति विशेष उल्टियां होने लगीं। सारी नशीली भंग उल्टियों में निकल के प्रति नहीं बल्कि उसके गुणों के प्रति होती है। गुणों गई। थोड़ी देर बाद आपके पिताजी को यह सारी बात के कारण ही व्यक्ति श्रद्धालु बनता है। गुणों के आकर मालूम हुई। उन्हें मन ही मन दुःख हुआ। अपने पुत्र के ऐसे काकासा के महान व्यक्तित्व को उजागर करने वाले किये पर क्रोध भा आया। पिताश्री न था सुराणाजा को कतिपय संस्मरणों को यहाँ पर प्रस्तुत कर रहा हूँ उलाहना देते हुए कहा-'ओ के करयो, फेरा रे माय की हो जातो तो मारी इज्जत रा टक्का कर देतो।' पिताजी १. शादी और भंग की मिठाई की बात का श्री सुराणाजी पर बहुत असर हुआ। वे अपने बात शादी के पूर्व की है। जब उनकी बारात सज- किये पर पछता रहे थे। आपको आत्मग्लानि हुई । मैंने धजकर शादी के लिए जा रही थी। श्री सुराणाजी दूल्हा यह क्यों किया जिससे मेरे पिताजी को इतना कष्ट हुआ। थे। उनका सामान अलग से रखा गया। दूल्हा राजा तत्काल उन्होने आजीवन इस प्रकार की नशीली वस्तुओं होता है । किसी मित्र ने शोक या मजाक में श्री सुराणाजी के त्याग कर दिये । भोग की प्रथम देहली पर ही त्याग की पेटी में मिठाई का एक डिब्बा रख दिया । मिठाई में का मार्ग प्रशस्त हो गया। इस प्रकार श्री सुराणाजी ने भंग की मात्रा अधिक थी। श्री सुराणाजी को इसके बारे जीवन में त्याग और व्रतों के माध्यम से परिष्कार लाने में मालूम नहीं था । बारात जब गन्तव्य स्थान पर पहुंची में कोई कमी नहीं रखी । तो श्री सुराणाजी के बड़े भाई श्री सुमेरमलजी ने मिठाई का डिब्बा निकाला, खोला और खाने लग गये। उन्होंने र २. जब बीड़ी के बजाय अंगुली जली श्री सुराणाजी से कहा-'दूल्हे राजा आओ मिठाई खाओ।' एक बार की बात है। कर्मयोगी श्री सुराणा साहब श्री सुराणाजी ने मिठाई बड़े चाव से खाई । लगभग चार- अपने ससुराल जा रहे थे। मार्ग में आपका परिचय एक पाँच चक्कियाँ खाई होंगी। मिठाई में भंग थी। धीरे-धीरे व्यक्ति से हुआ। वह व्यक्ति किसी सम्भ्रान्त परिवार का दोनों पर भंग असर करने लगी। दोनों पर नशा छाये नजर आता था। दोनों की बातचीत के पश्चात यह जा रहा था। दोनों एक दूसरे को देखकर हंस रहे थे। मालूम हुआ कि वह व्यक्ति भी उसी गाँव अपने ससुराल खिल-खिला रहे थे। शाम को तोरण के समय से कुछ जा रहा था। ससुराल दोनों ही पैदल ही जा रहे थे। पहले श्री सुकनराजजी बोहरा तिलक लगाने के लिए श्री सुराणाजी व नवपरिचित दोनों ही सजधजकर अपने आये । उन्होंने भी भंग जमा रखी थी। वे भी नशे में थे। गन्तव्य की ओर बढ़े जा रहे थे। रास्ते में नवपरिचित तीनों नशेबाज मिल गये। बहकी-बहकी बातें करने लगे। ने अपनी आदत के अनुसार बीड़ी पीना प्रारम्भ किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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