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________________ धूर्ताख्यान : पार्यन्तिक व्यंग्य-काव्यकथा .................................................................... ...... माध्यम से उपहास के निमित्त सामयिक कुरुचियों या कुरीतियों की कल्पनात्मक विवेचना के नियमानुकूल एक आकार प्रदान करता है। इसलिए, व्यंग्य का सर्वाधिक वैभव साहित्य के माध्यम से ही उपलब्ध हो सकता है। व्यंग्य मुख्यतः दो प्रकार का होता है : सरल और वक्र। सरल या सीधे ढंग से व्यंग्य का प्रयोग करने वाला लेखक प्राय: उपदेशक या उससे थोड़ा ही विशिष्ट होता है। ऐसे व्यंग्यकारों में कबीर, रविदास आदि की सीधी चोट करने वाली व्यंग्य-कविताएँ उदाहरणीय हैं । किन्तु, वक्र व्यग्य का प्रयोक्ता जिन पात्रों या वस्तुओं को अपने आक्रमण या प्रहार का विषय बनाता है, उनका वर्णन सीधे व्यंग्य से न करके उसे प्राय: अप्रस्तुत-प्रशंसा, अन्योक्ति या अन्योपदेश, वक्रोक्ति, अथवा व्याजोक्ति-शैली में उपस्थापित करता है। कहना न होगा कि व्यग्य-काव्य में वाच्य से इतर ध्वन्यात्मकता और सामान्य से परे विशिष्ट रसात्मक वाक्यावली के समायोजन से अद्भुत चमत्कार आ जाता है। तभी तो व्यंग्य का कठोर कशाघात मृदुल मालाघात की तरह प्रतीत होता है। व्यंग्य का अभिव्यक्तीकरण कला के विभिन्न माध्यमों-चित्र, मूर्ति, स्थापत्य, कथा, काव्य और नाटकों द्वारा सम्भव है। इसलिए, कलात्मक व्यंग्य को समझने के लिए सहृदय की अधिकाधिक प्रबुद्धता या पर्याप्त बौद्धिक जागरूकता अपेक्षित होती है। इस सन्दर्भ में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के 'अन्धेर नगरी चौपट राजा', 'वैदिकी हिंसा-हिंसा न भवति' आदि दृश्यकाव्यों-नाटकों की कथावस्तुओं के वर्णन-वैविध्य को निर्देशित किया जा सकता है। इस प्रकार के व्यंग्य से न केवल व्यक्तिगत चरित्रों में सुधार सम्भव होता है, वरन् वह सम्पूर्ण राष्ट्रीय चरित्र को उद्भाषित कर उसे आत्मसंशोधन के लिए प्रेरित करता है, कभी-कभी तो आत्म-चरित्र में आमूल-परिवर्तन लाने को विवश कर देता है । फलत: व्यंग्य अनिर्मित का निर्माण और निमित का पुननिर्माण भी करता है। __आचार्य हरिभद्र ने पाँच आख्यानों में विभक्त तथा प्राकृत के सर्व सर्वप्रिय छन्द 'गाथा' में निबद्ध 'धूख्यिान' में वक्र व्यंग्य की विच्छित्तिपूर्ण योजना की है। पुराणों की असम्भव और अंबुद्धिगम्य बातों के निराकरण के निमित्त व्यंग्य-कथालेखक हरिभद्र ने धूर्तगोष्ठी की आयोजना की है। कथा है कि उज्जयिनी के एक सुरम्य उद्यान में ठग विद्या के पारंगत सैकड़ों धूतों के साथ मूलदेव, कण्डरीक, एलाषाढ़, शश और खण्डपाना ये पाँच धूर्त्तनेता पहुँचे। इनमें प्रथम प्रथम चार पुरुष थे और खण्डपाना स्त्री थी । प्रत्येक पुरुष धूर्तराज के पांच-पांच सौ पुरुष-अनुचर थे और खण्ड पाना की पांच सौ स्त्री-अनुचर थीं। जिस समय ये धूर्त नेता उद्यान में पहुँचे थे, उस समय घनघोर वर्षा हो रही थी। सभी धूर्त वर्षा की ठण्ड से ठिठुरते और भूख से कुड़बुड़ाते हुए, व्यवसाय का कोई साधन न देखकर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि बारी-बारी से पांचों धूर्त्तनेता अपने-अपने जीवन के अनुभव सुनायें और जो धूर्त्तनेता शेष चारों के अनुभव की कथाओं को असत्य और अविश्वसनीय सिद्ध कर देगा, वही सारी मण्डली को एक दिन का भोजन करायेगा। इसके अतिरिक्त, जो धूर्त्तनेता स्वयं महाभारत, रामायण, पुराण आदि के कथानकों से अपनी अनुभवकथा का समर्थन करते हुए उसकी सत्यता के प्रति विश्वास दिला देगा, वह सभी धर्मों का राजा बना दिया जायगा । इस प्रस्ताव से सभी सहमत हो गये और सभी ने रामायण, महाभारत तथा पुराणों की असम्भव कथाओं का भण्डाफोड़ करने के निमित्त आख्यान सुनाये । किन्तु, खण्डपाना ने न केवल अपनी कल्पित अनुभव-कथाएँ सुनाई, वरन् उनका पुराण-कथाओं से समर्थन भी कर दिया और शर्तबन्दी के अनुसार यह सभी धूर्त्तनेताओं में अग्रणी मान ली गई। इसके अतिरिक्त उसने अपनी चतुराई से एक सेठ को ठगकर रत्नजटित अंगूठी प्राप्त की, जिसको बेचकर बाजार से खाद्य-सामग्री खरीदी गई और पूरी धूर्तमण्डली को भोजन कराया गया। ज्ञातव्य है कि 'धूर्ताख्यान' में व्यंग्य-कथाओं के माध्यम से विभिन्न पौराणिक मान्यताओं का निराकरण किया गया है। जैसे : सृष्टि-उत्पत्तिवाद, सृष्टि-प्रलयवाद, त्रिदेव अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश के स्वरूप की मिथ्या मान्यताएं, अन्धविश्वास, अग्नि का वीर्यपान, देवों के तिल-तिल अंश से तिलोत्तमा की उत्पत्ति आदि अस्वाभाविक मान्यताएँ, जातिवाद, वर्णवाद आदि की मनगढन्त अवधारणाएँ, ऋषियों में असंगत और असम्भव कल्पनाएँ, अमानवीय तत्व आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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