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________________ राजस्थान के जैन संस्कृत साहित्यकार ४६१ शतकम्, तुलसी शतकम् एवं तेरापंथ शतकम् लिखकर शतक परम्परा को व्यक्ति जीवन पर आधारित ७ शतक प्रदान किये। (५६) मुनि दुलीचन्द 'दिनकर'-आप भी आचार्य श्री तुलसी के विद्वान् शिष्य हैं। आपकी ३ रचनाएँ प्रसिद्ध हैं-गीतिसंदोह, तुलसीस्तोत्र एवं तेरापंथ शतकम् । प्रथम कृति में गीतिकाओं का संकलन तथा अपर दो कृतियाँ मुनिक्षत्रमल्ल की भांति ही आचार्य तुलसी एवं उनके पंथ की स्तुति में बनायी गई हैं। (६०) साध्वी संघमित्रा-साध्वी श्री संघमित्रा तेरापंथ धर्मसंघ की परम विदुषी साध्वियों में से एक है। आप जैन इतिहास, साहित्य व दर्शन की महान ज्ञाता हैं। आप संस्कृत व हिन्दी में समान रूप से लिखती हैं । गीतिकाव्य में भावों की तीव्रता, अनुभूति की सघनता, संक्षिप्तता, संकेतात्मकता एवं सूक्ष्मता अपेक्षित होती है। महिलाओं में इनकी सहज स्वाभाविक उपस्थिति होती है। अतएव साध्वी संघमित्राजी का गीति काव्य के प्रति, सम्मान स्वाभाविक है । आपकी संस्कृत रचनाएँ गीतिमाला एवं नीतिगुच्छ प्राप्त होती हैं। (६१) पं० रघुनन्दन शर्मा- जैन नहीं होते हुए भी प० रघुनन्दन शर्मा को जैन साहित्य के विवरण से अलग नहीं कर सकते । तेरापथ के संघनायक आचार्य तुलसी के प्रति भक्ति को आपने अपनी काव्य प्रतिभा से तुलसी महाकाव्य की रचना के रूप में प्रकट किया। २५ सगों के इस महाकाव्य में आचार्य के जन्म का आध्यात्मिक अभ्युदय के रूप में वर्णन, रस, अलंकार, नवीन उपमायें एवं रूपकों का वर्णन कर संस्कृत भाषा की जीवन्तता एवं युगानुरूप परिवर्तनशीलता का प्रमाण दिया है। इनके अतिरिक्त मुनि बुद्धमल्ल, डूंगरमल्ल, नगराज, धनराज, कन्हैयालाल मोहनलाल शार्दूल, साध्वी मंजुलाजी, साध्वी कमलाजी भी साहित्य सृजन में सक्रिय हैं। दिङमात्र प्रदर्शित इन कृतियों एवं कृतिकारों के विवरण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राजस्थान में जैन सम्प्रदाय ने संस्कृत की उन्नति एवं प्रसार का प्रशंसनीय कार्य किया । सभी जैन साहित्यकारों ने केवल जैन धर्म एवं दर्शन पर ही लेखनी नहीं चलाई अपितु जैनेतर दर्शन, व्याकरण, काव्य एवं साहित्य पर भी उतनी ही उदारता एवं सहजता से लेखन कार्य किया । आशा है, शोधार्थी वर्ग इस उपेक्षित परम्परा की शोध-खोज की ओर भी ध्यान देना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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