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________________ जैन साहित्य में कोश-परम्परा ४२७. . ................................................................. साधुसुन्दर गणि : शब्द रत्नाकर-खरतरगच्छीय साधुसुन्दरगणि ने वि० सं० १६८० में इस कोश की रचना की । साधुसुन्दरमणि साधुकीर्ति के शिष्य थे। इनके जीवन-वृत्त के बारे में अधिक जानकारी अप्राप्य है। यह पद्यात्मक कृति है । इसमें छ: काण्ड हैं१. अर्हत् २. देव ३. मानव ४. तिर्यक ५. नारक ६. सामान्य काण्ड। इनकी अन्य रचनायें-'शक्ति रत्नाकार' और 'धातु रत्नाकर' हैं । मुनिधरसेन : विश्वलोचन कोश-मुनि धरसेन ने विश्वलोचन कोश की रचना की है। इसी का अपर नाम मुक्तावली कोश भी है। आप सेन वंश में उत्पन्न होने वाले कवि और वादी मुनिसेन के शिष्य थे। ये समस्त शास्त्रों पारगामी तथा काव्यशास्त्र के मर्मज्ञ थे। इनके काल का निश्चित ज्ञान नहीं होता। एक अनुमान के अनुसार इनका समय चौदहवीं शती था। इस अनेकार्थ कोश में २४५३ श्लोक है। इस कोश के रचनाक्रम में स्वर और क वर्ग आदि के क्रम से शब्द के आदि का निर्णय किया गया है। इनमें शब्दों को ३३ वर्ग, क्षान्त वर्ग और अव्यय वर्ग, इस प्रकार ३५ वर्गों में विभक्त किया गया है। जिनभद्रसरि : अपवर्ग नाममाला-इस कोश के प्रणेता जिनभद्रसूरि हैं । ये अपने आपको 'जिनवल्लभसूरि' और 'जिनदत्तसूरि' का सेवक भी कहते थे।' इस आधार पर इनका रचना काल १२वीं शती निश्चित होता है। लेकिन इस समय के बारे में विद्वान् एक मत नहीं हैं। इस ग्रन्थ का नाम 'जिन रत्न कोश' में 'पंचवर्गपरिहारनाममाला' दिया गया है। लेकिन इसका आदि और अन्त देखते हुए 'अपवर्ग नाममाला' नाम ही उचित प्रतीत होता है। इस कोश में पाँच वर्ग यानी क से म तक के वर्गों को छोड़कर य, र, ल, व, श, प, स, ह-इन आठ वर्गों में से कम ज्यादा वर्णों से बने शब्दों को बताया गया है। इस प्रकार यह कोश अपने आप में अनूठा है। अमरचन्द्रसूरि : एकाक्षर नाममालिका-इस कोश का प्रणयन १२वीं शती में अमरचन्द्रसूरि द्वारा किया गया। अमरचन्द्रसूरि ने गुजरात के राजा विसलदेव की राजसभा को अलंकृत किया था। ये शीघ्र कवित्व के कारण समस्यापूर्ति में बड़े निपुण थे। आपका समकालीन कवि समाज में अत्यन्त सम्मान था। इस कोश का प्रथम श्लोक अमर कवीन्द्र नाम दर्शाता है। इन्होंने सभी कोशों का अवलोकन करके इस कोश की रचना की है, इसमें २१ श्लोक हैं। इनके अन्य ग्रन्थ निम्न हैं१. बाल भारत २. काव्यकल्पलता ३. पद्मानन्द महाकाव्य ४. स्यादि शब्द समुच्चय । महाक्षपणक: एकाक्षर कोश-एकाक्षर कोश 'महाक्षपणक' प्रणीत है। प्रणेता के सम्बन्ध में "एकाक्षरार्धसंलापः स्मृतः क्षपणकादिभिः" के अतिरिक्त कुछ जानकारी प्राप्त नहीं होती। १. श्रीजिनवल्लभ जिनदत्तसूरिदेवी जिनप्रिय विनेयः । अपवर्ग नाममालामकरोज्जिनभद्रसूरिरिमान् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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