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________________ . १४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड D oo sra... .......................................................... -वर्षेभर में एक माह से ज्यादा यात्रा नहीं करनी किन्तु साधु-सन्तों के साथ विहार एवं पारिवारिक कारणों से आगार। (१३) वि० सं० २०१२ कार्तिक शुक्ला ५ को आचार्य श्री तुलसी से ही पुनः निम्नानुसार त्याग लिये -घर में १०० रुपये से ज्यादा नहीं रखना। -घर में चाँदी-सोने के बर्तन नहीं रखना। -एक वर्ष में पचास गज से ज्यादा वस्त्र नहीं पहनना। -दिन में ढाई घण्टे से अधिक खाने-पीने में व्यतीत नहीं करना । (१४) वि० सं० २०१४ कार्तिक शुक्ला १३ को राणावास में मुनिश्री गणेशमलजी से इस प्रकार त्याग लिये -जीवनपर्यन्त परिग्रह का त्याग । -भाई से १०० रुपये से अधिक खर्च हेतु नहीं मँगाना। -दिन में चौदह सामायिक करना । (१५) वि० सं० २०१४ मृगसर शुक्ला ११-साध्वी श्री विरदाजी से ग्यारहवीं पडिमा प्रारम्भ की। (१६) वि० सं० २०१५ कार्तिक कृष्णा ३ को कानपुर में आचार्य श्री तुलसी से निम्न प्रकार से त्याग लिये -स्थावर अथवा हिलते-चलते प्राणी की एक करण एक योग से हिंसा नहीं करना। -प्रतिदिन पन्द्रह सामायिक करना। -प्रतिदिन एक बार कपड़ों का पलेवण करना। -प्रतिदिन दो घण्टे से अधिक समय भोजन करने में नहीं लगाना । (१७) वि० सं० २०२६ माघ शुक्ला ११-हैदराबाद में आचार्य श्री तुलसी से निम्न त्याग ग्रहण किये -एक वर्ष में २५ मीटर से अधिक कपड़े का प्रयोग नहीं करना । -किसी की निन्दा न तो करना और न ही सुनना । -चौदह नियम का प्रतिदिन स्मरण करना। (१८) वि० सं० २०३५ फाल्गुन शुक्ला ३-छापर गाँव में आचार्य श्री तुलसी से यह प्रतिज्ञा ग्रहण की कि भविष्य में एक भी नया मकान नहीं बनाएँगे। (१९) वि० सं० २०३६ मृगसर कृष्णा ७-राणावास में साध्वीश्री सिरहकंवरजी से निम्न प्रतिज्ञा ली -जीवनपर्यन्त संस्था के लिए अर्थसंग्रह हेतु बाहर नहीं जायेंगे। आपने अपने जीवन को किस प्रकार शनैः-शनैः संयम और साधना की ओर प्रवृत्त किया, यह त्याग और प्रत्याख्यान के उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है। इन त्याग प्रत्याख्यानों के साथ-साथ तपस्या की लौ भी निरन्तर प्रज्वलित रही है। वि० सं० २००२ से वि० सं० २०२२ तक प्रतिवर्ष चातुर्मासकाल में आपने एकान्तर उपवास किये और प्रतिवर्ष चोला का एक थोकड़ा एक से दस तक किया । वि० सं० २०२२ से आप प्रतिमाह बारह एकासन कर रहे हैं। एकासन हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, ग्यारस एवं चतुर्दशी के कुल दस एवं एक-एक अमावस्या और पूर्णिमा का करते हैं । इनके अतिरिक्त औसत १०-१२ उपवास प्रतिवर्ष कर लेते हैं । समय-समय पर आपने और तपस्याएँ भी की हैं, जिनके आँकड़े प्रयास करने पर भी उपलब्ध नहीं हो सके । वि० सं० २००५ में जब आपकी बहिन श्रीमती सुन्दरबाई कटारिया का दुःखद अवसान हो गया तो आपने उसी समय आत्म-शुद्धि करने व मोहनीय कर्मों के क्षय हेतु आगामी छ: माह तक एकान्तर करने का संकल्प ले लिया। उस एकान्तर काल में आप जब उपवास का पारणा करते तो उसमें पाँच द्रव्यों से अधिक सेवन नहीं करते । इसी प्रकार आपके लधु भ्राता श्री अमोलकचन्दजी सुराणा का वि० सं २००८ में देहान्त हो गया तो उस समय भी आपने एक साथ चार उपवास (चोला) पचक्ख लिये एवं तत्पश्चात् छः माह तक एकान्तर करते रहे । त्याग व तपस्या के इस संक्षिप्त विवरण से जाहिर है कि आत्मोत्थान में आपने साधना और तपश्चर्या का कितना अनूठा, आकर्षक एवं अद्वितीय समन्वय किया है। 0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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