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________________ ३५० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड है । इसके सूत्रों की रचना सरल व स्पष्ट है। जैसे प्रत्याहार सूत्र अ इ उ ऋ लृ ए ऐ ओ औ, ह य व र ल ज णन ङम आदि । १ C ऊपर वर्णित जैन व्याकरण परम्परा में संस्कृत के प्रमुख व्याकरण हैं। इनके अतिरिक्त भी अनेक ऐसे व्याकरण और उपलब्ध होते हैं जिनका महत्त्व प्रतीत नहीं होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनका यहाँ संक्षेप में उल्लेख कर देना ही उचित होगा। अतः अग्रिम पंक्तियों में उन पर एक सूचनात्मक दृष्टिकोण से संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की जा रही है । शब्दार्णव +0+0+0+0 आचार्य गुणनन्दि ने जैनेन्द्र व्याकरण के सूत्रों से कुछ परिवर्तन और परिवर्धन कर इस व्याकरण की रचना की । इसका रचनाकाल विक्रम सम्बत् १००० के आसपास है । प्रेमलाभ व्याकरण इसकी रचना अंचलगच्छीय मुनि प्रेमलाभ ने की है। इसका रचनाकाल वि० सं० १२८३ है। इसका नाम इसके रचयिता के नाम पर ही रख दिया गया है। यह एक स्वतन्त्र व्याकरण रचना है । विद्यानन्द व्याकरण तपागच्छीय आचार्य देवेन्द्र सूरि के शिष्य विद्यानन्द सूरि ने अपने ही नाम पर इस ग्रन्थ की रचना की । सका रचनाकाल वि० सं० १३१२ है । यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । गुर्वावली में आचार्य मुनि सुन्दरसूरि ने कहा है कि इस व्याकरण में सूत्र कम हैं, परन्तु अर्थ बहुत है। इसलिए यह व्याकरण सर्वोत्तम जान पड़ता है। नूतन व्याकरण कृष्णषिच्छ के महेन्द्र सूरि के शिष्य जयसिंह ने वि० सं० १४४० के आसपास इस नूतन व्याकरण की रचना की । यह व्याकरण स्वतन्त्र है अथवा किसी अन्य बृहद् व्याकरण ग्रन्थ पर आधारित, यह स्पष्टीकरण नहीं हुआ है। बालबोध व्याकरण २. जैनग्रन्थावली के अनुसार इसके रचयिता आधार पर की गई है। इसका रचनाकाल वि० सं० १४४४ है । शब्दभूषण व्याकरण तपागच्छीय आचार्य विजयसूरि के शिष्य दानविजय ने इस ग्रन्थ की रचना की। इसका रचनाकाल वि० सं० १७७० के आसपास रहा है। यह स्वतन्त्र कृति है या अन्य व्याकरण ग्रन्थ पर आधारित, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है । यह ग्रन्थ ३०० श्लोक प्रमाण है, इस प्रकार का निर्देश जैन ग्रन्थावली में ( पृ० २६८ ) है । प्रयोगमुख व्याकरण इस ग्रन्थ की ३४ पत्रों की प्रति जैसलमेर के भण्डार में विद्यमान है। इसके रचयिता का नाम ज्ञात नहीं हुआ है। Jain Education International १. विस्तृत अध्ययन के इष्टस्य मुनि बीचन्द कमल- भिक्षुणन्दानुशासन एक परिशीलन, संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण और कोश परम्परा, पृ० १४३. गुर्वावली पद्य १७६. मेरुतु गसूरि रहे हैं। इसकी रचना तंत्र का व्याकरण के सूत्रों के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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