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________________ १० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड r e s s ..... ... ........... ............. हुई । अब तक का जो स्थायी कोष विद्यमान था, आपने उसे इस कार्य में व्यय करना उचित नहीं समझा, ऐसी स्थिति में आप पुन: अर्थ-संग्रह के कार्य में संलग्न हो गये। एक वर्ष में एक माह तक राणावास से बाहर रहकर अर्थ-संग्रह करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। वि०सं० २०३१ में कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय तथा छात्रावास विधिवत् नये भवनों में आरम्भ हो गये किन्तु अर्थसंग्रह का काम अविरल गतिमान रहा। वि०सं० २०३६ में युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी का चातुर्मास लुधियाना (पंजाब) में हुआ। इस अवसर पर आपने संस्था के छात्रों के साथ लुधियाना आचार्य प्रवर के दर्शन किये और कश्मीर भ्रमण के पश्चात् राणावास लौटने पर आपने अर्थ-संग्रह हेतु राणावास से बाहर यात्रा नहीं करने का संकल्प ग्रहण कर लिया । इस प्रकार वि०सं० २००१ से वि०सं० २०३६ तक आपने कुल ८४ लाख रुपये चन्दे के रूप में एकत्र किये । इतने विशाल भवनों के निर्माण के बाद भी २२ लाख रुपये स्थायी कोष के रूप में आज संस्था के पास सुरक्षित हैं । यद्यपि कालेज के संचालन हेतु अभी तक राजकीय अनुदान नहीं मिल रहा है फिर भी उसके आवर्तक एवं अनावर्तक व्यय में कहीं कोई रुकावट अनुभव नहीं हो रही है । इसके मूल में स्थायी कोषनिर्माण की आपकी सूक्ष्म दृष्टि है । इस दूर दृष्टि ने संस्था को आत्मनिर्भर ही नहीं बनाया अपितु संस्था के भावी विकास की सुदृढ़ आधारशिला का संतुलित शिलान्यास भी आपके करकमलों द्वारा सम्पन्न हो गया। मर्यादा महोत्सव तेरापंथ धर्मसंघ में प्रति वर्ष माघ शुक्ला सप्तमी को आयोजित होने वाला मर्यादा महोत्सव अनुशासन के आधारस्तम्भ के रूप में सुख्यात है। इस अवसर पर संघ के समस्त साधु-साध्वी एकत्रित होते हैं और यहीं से आगामी चातुर्मास के लिए प्रस्थान भी करते हैं । श्रावक-श्राविकाओं का विशाल जन समूह भी इस अवसर पर उमड़ पड़ता है। आयोजन की व्यवस्था चातुर्मास की व्यवस्था से कम नहीं होती । राणावास इस दृष्टि से बहुत छोटा गाँव है किन्तु आपके अप्रतिम साहस ने इस विद्याभूमि को यह सुअवसर भी प्रदान किया। वि०सं० २०१० का मर्यादा महोत्सव यहीं पर आयोजित हुआ । इस अवसर पर संघ के लगभग चार सौ तीन साधु-साध्वी एकत्र हुए। आगन्तुकों की आवासव्यवस्था के लिए तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु की पावन-स्मृति में भिक्षुनगर के नाम से एक उपनगर बसाया गया जिसमें कुल ७५० कोटड़िया निवास हेतु निर्मित की गई । विद्युत व्यवस्था एवं नलों द्वारा जल प्रदाय का उत्तम आयोजन किया गया । आपके अथक श्रम से राणावास का यह प्रथम मर्यादा महोत्सव अत्यन्त सफल एवं सराहनीय रहा। दिन-चर्या आपकी दिनचर्या अत्यन्त व्यस्त एवं नियमित है। दिन-रात चौबीस घण्टों में से एक क्षण भी आप व्यर्थ नष्ट नहीं करते। शरीर पर आलस्य का सर्वथा अभाव अहर्निश दृष्टिगोचर होता है। वार्धक्य आपकी दिनचर्या में बाधा नहीं डालता। कभी कोई मीटिंग, समारोह आदि कार्यक्रम हुए और उनमें आपकी उपस्थिति अनिवार्य हुई तो ऐसी स्थिति में आप दिनचर्या को तदनुसार योजित कर लेते हैं, किन्तु इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि दैनिक साधना में कहीं कोई व्यवधान नहीं आये। रात्रि-शयन से लेकर दूसरे दिन की सम्पूर्ण दिनचर्या का क्रम इस प्रकार रहता है (१) रात्रि आठ बजे से साढ़े दस बजे तक शयन । (२) रात्रि १०-३० बजे से प्रातः लगभग ७-३० बजे तक कुल ग्यारह सामायिक । (३) प्रातः साढ़े सात बजे से आठ बजे तक नित्य-कर्म शोचादि एवं तत्पश्चात् प्रातःकालीन नास्ते में केवल दूध ग्रहण करते हैं। (४) प्रातः आठ बजे से ग्यारह बजे तक संस्था कार्यालय में संस्था सम्बन्धी दैनिक कार्य । (५) ग्यारह बजे से साढ़े ग्यारह बजे तक भोजन एवं विश्राम । (६) प्रात: साढ़े ग्यारह बजे से सायं पांच बजे तक सात सामायिक । (७) पाँच बजे सन्ध्याकालीन भोजन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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