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________________ Cong on colo अणुव्रत और अणुव्रत आन्दोलन श्री सतीश चन्द्र जैन 'कमल' [जैन वासण भण्डार 'नागरवेल हनुमान' सुखरामनगर, अहमदाबाद-२१ (गुजरात)] आज संसार में एक बड़ी विचित्र बात देखने में आती है। हम पुराणों के जिस देवासुर संग्राम की चर्चा सुनते थे, वह आज प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। एक ओर मनुष्य विज्ञान की प्रगति के नाम पर विनाशकारी यन्त्रों के निर्माण एवं अनुसन्धान में पागल हो रहा है, दूसरी ओर वही मानव उनसे त्राण पाने के उपाय सोचने में व्यग्र है । वह उनका उपयोग अपने कल्याण के लिए करना चाहता है, विनाश के लिए नहीं । एक साथ घृणा और सहयोग के मार्ग पर चलता हुआ मानव आज जैसे खो गया है। जैसे अनन्त शक्ति की खोज में वह अशान्त होकर शान्ति की पुकार लगा रहा है । देवासुर संग्राम में जो स्थिति तब हुई थी, जब सागर से हलाहल का जन्म हुआ था, वही स्थिति आज दिखाई दे रही है । अमृत की खोज में जैसे मानव के हाथ में हलाहल ही आ गया है। इस हलाहल के अग्नि-दाह से सम्पूर्ण चराचर संत्रस्त है, लेकिन शंकर का कहीं पता नहीं लग रहा है। न जाने किस दिन उस नीलकंठ का उदय होगा और यह त्रस्त मानवता त्राण पा सकेगी और तभी अमृत का उदय होगा । गांधीजी का कहना था -- देश के लोग शुद्ध हों, सेवापरायण हों । वे स्वराज्य का भी ऐसा ही अर्थ करते थे । वे जीवन भर इसके लिए चेष्टा करते रहे। आज हमारे देश को स्वराज्य प्राप्त है, पर जो काम हो रहा है, उससे उतना लाभ नहीं होता, जितना लाभ होना चाहिए करोड़ों रुपयों का गबन हो रहा है। स्वानों पर लोग भाई-भतीजावाद में संलग्न हैं। बड़े खेद और राष्ट्रीय चिन्ता का विषय है कि हर विभाग में आज रिश्वतखोरी है, चोर बाजारी है। राष्ट्र में यह बहुत बड़ी व्याधि है । इसका असली कारण है, सच्चरित्रता का अधःपतन । हम आज स्वतन्त्र राष्ट्र की अट्टालिका बना रहे हैं, किन्तु उसके सिद्धान्तों को पक्का करना होगा। उसके सिद्धान्त हैं- सदाचार और सच्चरित्रता । अणुव्रत आन्दोलन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि संवत् २००५ में आचार्य श्री तुलसी छापर में पावस प्रवास कर रहे थे। एक दिन वहाँ उनके पास बैठे हुए कुछ व्यक्ति नैतिकता के विषय में बात कर रहे थे। उनमें से एक ने निराशा के स्वर में कहा- इस युग में नैतिकता कोई रख ही नहीं सकता । इस भाई के इन शब्दों से आचार्यश्री के मन में उथल-पुथल मच गई। Jain Education International उसी दिन प्रातःकालीन प्रवचन सभा में ऐसे पच्चीस व्यक्तियों की माँग की जो अनैतिकता के विरुद्ध अपनी शक्ति लगा सकें, नैतिक रह सकें। वातावरण में गम्भीरता छा गई। सहसा सभा में से कुछ व्यक्ति खड़े हुए और उन्होंने अपने नाम प्रस्तुत कर दिये। एक-एक कर २५ नाम आचार्यश्री के पास आ गये। उस दिन की यह छोटी-सी घटना ही अणुव्रत आन्दोलन के लिए नींव की प्रथम ईंट बन गई । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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