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________________ olgoigo Jain Education International कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड इस वंश-परम्परा के आधार पर श्री मोतीलालजी सुराणा के एक पुत्र श्री चतुरभुजजी हुए। चतुरभुजजी के कुल सात पुत्र हुए। उनमें श्री शेषमलजी सुराणा इनके पाँचवें पुत्र थे। जन्म एवं परिवार हमारे अभिनन्दनीय श्री केसरीमलजी सुराणा इन्हीं श्री शेषमलजी सुराणा के सबसे बड़े पुत्र हैं । आपकी मातुश्री का नाम श्रीमती छगनीदेवी था आपका जन्म वि० सं० १९६६ की फाल्गुन कृष्णा सप्तमी, गुरुवार तदनुसार ४ मार्च सन् १६१० को पाली जिले के गाँव राणावास में हुआ । जन्म के समय ज्येष्ठा नक्षत्र, मकर लग्न तथा बुध की गजदशा थी । आपके दो भाई और थे- श्री अमोलकचन्दजी एवं श्री भँवरलालजी । अमोलकचन्दजी अपने चाचा श्री जवानमलजी के गोद ले गये। इनका विवाह पनोता निवासी श्री भानीरामजी के यहाँ पर हुआ। इनके एक पुत्र श्री जवरीलाल एवं एक पुत्री सुशीला हुई थी भँवरलालजी सबसे छोटे भाई हैं इनका विवाह रामसिंहगुड़ा निवासी श्री सुमेरमलजी सेठिया की सबसे बड़ी पुत्री सुगनीदेवी के साथ सम्पन्न हुआ। श्री भँवरलालजी के तीन पुत्रियाँ हुईंदमयन्ती, विमला और पुष्पा । दमयन्ती देवी को ग्रन्थ के नायक श्री केसरीमलजी ने गोद ले लिया । बाल्यकाल एवं शिक्षा आपके बाल्यकाल का अधिकांश समय अपने ननिहाल गाँव राणावास में श्री नवलजी आच्छा के यहाँ पर व्यतीत हुआ । शेष समय अपने घर पर ही बीता । प्रारम्भिक शिक्षा राणावास में ही प्रसिद्ध शिक्षक स्व० श्री फाऊलालजी के सान्निध्य में सम्पन्न हुई। उसके बाद आपने हैदराबाद में मैट्रिक तक अध्ययन किया । - छात्र जीवन में आप बड़े नटखट थे एवं खेलने की ओर रुचि ज्यादा थी। एक बार की घटना है कि सुबह भोजन करने के बाद स्कूल जाने के लिए घर से निकले, रास्ते में कुछ लड़के गोलियाँ खेल रहे थे । आप भी उस खेल की ओर आकर्षित हो गये और उनके साथ ही गोलियाँ खेलने में इतने व्यस्त हो गये कि शाम को भोजन के समय वर पर पहुँचे । संयोग से उसी दिन रात्रि को बाजार में पिताजी का मिलना मास्टरजी से हो गया। पिताजी ने पूछा, 'बच्चा कैसा है, पढ़ता है या नहीं ?' मास्टरजी ने हकीकत बता दी कि वह आज दिन भर स्कूल में नहीं आया । पिताजी सुनकर गुस्सा हुए घर पर आते ही पूछा कि दिन भर कहाँ थे? बालक केसरीमलजी ने वस्तुस्थिति बता दी। पिताजी के क्रोध की सीमा नहीं रही। उन्होंने आव देखा न ताव, दोनों पैरों के मध्य एक लकड़ी का डण्डा फँसाकर पैरों को रस्सी से बाँध दिया और दो-चार लातें-घूसे मारकर वापस बाजार में चल दिये। उस समय माँ घर पर नहीं थी, जब वह आई तो स्थिति देखकर उन्होंने भी पूछताछ की। बालहृदय केसरमलजी ने फिर दिन भर की हकीकत माँ के सामने बयान कर दी। माँ ने भी सारी स्थिति सुनकर और मारा। रात्रि को लगभग ग्यारह बजे पिताजी घर पर आये तब उन्होंने पूछा कि 'बोल, अब और ऐसा करेगा ? स्कूल नहीं जायेगा ?' केसरीमलजी ने ऐसी गलती पुनः नहीं करने का आश्वासन दिया और स्कूल नहीं जाने की गलती के लिए क्षमा माँगी, तब कहीं जाकर इस सजा से मुक्ति मिली। बालक केसरीमल के कोमल मस्तिष्क पर इस घटना का बहुत प्रभाव पड़ा, उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली कि नियमित स्कूल पढ़ने जाना, पढ़कर सीधे घर आना और घर पर भी पढ़ना या घर के काम में हाथ बँटाना । विवाह एवं सन्तान वि० सं० १९८० की आषाढ़ कृष्णा १३ को केवल १४ वर्ष की अल्प आयु में आपका विवाह निमली निवासी श्री समरथमलजी सिसोदिया की सुपुत्री सरलप्रकृति और उदारहृदया सुन्दरदेवी के साथ हुआ श्री समरथमलजी का व्यापार आन्ध्र प्रदेश के जयाराम गाँव में था। बारात बुलारम से जयाराम गाँव बैलगाड़ी में गयी। उस समय यातायात के साधन इतने विकसित नहीं थे । बारात में कुल १०० बाराती थे। शादी बड़ी धूमधाम से की गयी। शादी के कुछ महीनों बाद 'मुकलावा' नाम की रस्म का रिवाज था । छः माह बाद इस रस्म की पूर्ति करने के लिए आप ससुराल गये। उन दिनों जंवाई के आने पर गालियां गाने का रिवाज था । जयाराम गाँव में समाज के घर नहीं थे, अतः ससुराल वालों ने चार-पांच मील दूर-दूर से गालियाँ माने हेतु औरतें बुलवायें आप भोजन करने बैठे तो उसी समय औरतों ने भी सामूहिक स्वर में और गीतों की शैली में गालियाँ गानी शुरू कीं । गालियों की स्वर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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