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________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी चुराणा : जीवन परिचय 0 डा० देव कोठारी भारत महापुरुषों की धरती है। इसके कण-कण में महापुरुषों का प्रभामण्डल परिव्याप्त है। इन अभिनन्दनीय आत्माओं का अतुलनीय व्यक्तित्व और कृतित्व भारत के गौरव एवं गरिमा की अजस्र धारा है। उनकी कीर्ति गाथाएँ मानव मात्र को प्रेरणा प्रदान करती हैं । श्री केसरीमलजी सुराणा ऐसे ही एक कीर्तिपुरुष हैं । आप ओसवाल जाति की सुराणा गोत्र के कुल-दीपक हैं। एक जन-श्रुति के अनुसार सुराणा गोत्र की उत्पत्ति का इतिवृत्त लगभग नौ शताब्दी पुराना है। 'सुराणा' गोत्र की उत्पत्ति अन्हिलवाड़ा' (गुजरात) में सिद्धराज जयसिंह सोलंकी (१०६४-११४३ ई०) का राज्य था। इनके यहाँ पर जगदेव नामक सामंत प्रतिहारी के दायित्व पर नियुक्त था। जगदेव अत्यन्त वीर, पराक्रमी एवं निर्भीक स्वभाव का हृष्ट-पुष्ट पुरुष था। उसे प्रतिहारी के दायित्व के उपहारस्वरूप सिद्धराज जयसिंह की ओर से एक लाख स्वर्णमुद्राएँ प्रतिवर्ष प्रदान की जाती थीं। जगदेव के सात पुत्र थे, यथा-सूरजी, संखजी, सांवलजी, सामदेवजी, रामदेवजी, छारदजी आदि । सातों पुत्र अपने पिता की तरह ही शूरवीर थे। एक रात्रि को जगदेव प्रतिहारी का दायित्व निभा रहे थे। कृष्णपक्ष की चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि थी। घनघोर अंधेरा व्याप्त था। उस समय दूर जंगल में हृदय को प्रकम्पित कर देने वाली किलकारियों एवं अट्टहासों की कर्णभेदी ध्वनि से सिद्धराज जयसिंह की निद्रा उचट गई। उसने जगदेव से कहा, 'ये डरावनी ध्वनियाँ कहाँ से आ रही हैं ? मेरी स्वयं की निद्रा खुल गई है तो नगर की प्रजा का क्या हाल होगा ? तुम जाओ और कारण का पता लगाकर आओ।' जगदेव 'जो आज्ञा' कहकर उसी समय वहाँ से निकल पड़ा। जिधर से आवाजें आ रही थीं, उधर ही जंगल में जब वह पहुँचा तो देखता है कि देवी कालिका, बड़े-बड़े बेताल एवं चौंसठ जोगिनियाँ एकत्रित होकर गा रही हैं, नाच रही हैं तथा किलकारियां व अट्टहास कर रही हैं। जगदेव उनके समीप पहुँचा और बोला, 'तुम सब कौन हो? क्यों सबकी नींद हराम कर रखी है ?' जोगिनियाँ बोलीं, 'सिद्धराज जयसिंह ने अपने राज में पशुबलि बन्द कर दी है । भैसे और बकरे अब हमें नहीं चढ़ाये जा रहे हैं । हम भूखी हैं। हमारे कोप से सिद्धराज जयसिंह अब एक माह के भीतर ही भीतर मरने वाला है, इसलिए हम उसका उत्सव मना रही हैं।' यह सुनते ही जगदेव चौंका, किन्तु हिम्मत करके बोला, 'उसकी मृत्यु कैसे होगी?' जोगिनियों ने उत्तर दिया, 'कुछ समय बाद एक म्लेच्छ की सेना यहाँ आकर आक्रमण करेगी। उससे हजारों सैनिक मारे जावेंगे, हमारे खप्पर रक्त से भरेंगे, हम मुण्डमालाएँ धारण करेंगी। इस युद्ध में हम सब जोगिनियाँ तथा क्षेत्रपाल वीर मिलकर ऐसी स्थिति पैदा करेंगे कि दुश्मन के हाथों १ अन्हिलवाड़ा को अन्हिलपुर पाटन भी कहते हैं। सिद्धराज जयसिंह यहाँ का अत्यन्त प्रभावशाली शासक था, उसके नाम से इसे सिद्धपुर पाटन भी कहा जाता है । वर्तमान में यह पाटन के नाम से जाना जाता है। २ सातवें पुत्र का नाम उपलब्ध नहीं होता है। ३ ग्रन्थों में महमूद गजनवी के आक्रमण की बात लिखी है, किन्तु गुजरात पर उसका आक्रमण बहुत पहले ही भीमदेव प्रथम के काल में हो गया था। यह संभवतः किसी दूसरे आक्रमण का संकेत होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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