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________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड प्रातिभ ज्ञान से भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों काल का ज्ञान होता है तथा दूर प्रदेश में स्थित अत्यन्त सूक्ष्म वस्तुएँ प्रत्यक्ष दिखई देती है। "श्रावण' सिद्धि से दिव्य शब्द सुनने की, वेदन सिद्धि से दिव्य स्पर्श अनुभव करने की, आदर्श सिद्धि से दिव्य रूप का दर्शन करने की, आस्वाद सिद्धि से दिव्य रस का आस्वाद लेने की, वार्ता सिद्धि से दिव्य शब्द ग्रहण करने की शक्ति प्रकट होती है। बन्धन के हेतुभूत कर्म संस्कार को शिथिल करने से तथा मन की गति को जान लेने से चित्त दूसरे शरीर में प्रवेश करने के लिए समर्थ हो जाता है।' उदान वायु को जीत लेने से जल, कर्दम एवं कंटक आदि का योगी के शरीर में संग नहीं होता ।२ समान वायु को जीत लेने से शरीर दीप्तिमान हो जाता है। श्रोत्र और आकाश के सम्बन्ध में संयम करने से कर्णेन्द्रिय में सुनने की दिव्य शक्ति प्रकट होती है। इससे योगी सूक्ष्मातिसूक्ष्म शब्द को बहुत दूर से सुन सकता है। शरीर और आकाश के सम्बन्ध में संयम करने से आकाश गमन की क्षमता आती है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश ये पाँच प्रकार के भूत हैं। प्रत्येक भूत की पाँच अवस्थाएँ हैं। स्थूल, स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय और अर्थतत्त्व इन पाँचों अवस्थाओं में संपन करने से भूतविजय हो जाती है । भूत-जय से अणिमादि आठ सिद्धियों का प्रादुर्भाव तथा कायसम्पत् की प्राप्ति होती है और भूतधर्म की बाधा मिट जाती है। अणिमादि सिद्धियों के आठ प्रकार अणिमा : सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप का निर्माण । लघिमा : शरीर को हलका बनाना। महिमा : सुविशाल शरीर का निर्माण । गरिमा : शरीर में भार का विकास । प्राप्ति : संकल्पमात्र से यथेप्मित वस्तु की उपलब्धि । प्राकाम्य : निर्विघ्न रूप से भौतिक पदार्थों की इच्छापूर्ति । वशित्व : भूत एवं भौतिक पदार्थों का वशीकरण । ईशित्व : भूत एवं भौतिक पदार्थों के नाना रूप बनाने का सामर्थ्य । रूप, लावण्य, बल, वज्र संहनन के समान देह का गठन-शरीर सम्बन्धी इन सम्पदाओं की उपलब्धि कायसम्पत् सिद्धि का परिणाम है। २. १. पा० वि० ३३८. वही, ३१३६. समानजयाज्ज्वलनम् ।-पा० वि० ३।४०. ४. श्रोत्राकाश सम्बन्धसंयमाद् दिव्य श्रोत्रम् ।-पा० वि० ३।४१. पा० वि० ३।४२. वही, विभू० ३।४४. ७. वही, ३४५. . वही, ३।४६. * ० ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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