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________________ Contoloncolo o do onto o 0. ८८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ तृतीय खण्ड मातुः पितुश्च भगिनी मातृवानी तथैव च। जनानां वेदविहिता मातरः षोडशस्मृता ॥ ब्रह्मवैवर्तपुराण, ग०१५ ० ) देवता की पत्नी, पिता की स्तन पिलाने वाली, गर्भधारण करने वाली, भोजन देने वाली, गुरुपत्नी, इष्ट पत्नी ( विमाता), पितृ - कन्या ( सौतेली बहन ), सहोदरा बहन, पुत्रवधू, सास, नानी, दादी, भाई की पत्नी, मौसी बुआ और मामी - वेद में मनुष्यों के लिये ये सोलह प्रकार की मातायें बतलायी हैं । मिलित नारी ही अपने इन सोलह प्रकार के मातृरूपों में अपने दायित्व का निर्वाह सुचारु रूप से कर सकती है। यहाँ शिक्षा का अर्थ सीमित पुस्तकीय ज्ञान या डिग्रियां इकट्टा करने से नहीं है। शिक्षा का व्यापक अर्थ है जिसके साधन भी व्यापक हैं और लक्ष्य भी महत् । वैदिक युग की नारी को वही शिक्षा मिलती थी । इतिहास इसका साक्षी है । याज्ञवल्क्य की पत्नी अपने पति साथ वाद-विवाद करती थी। विदुषी गार्गी की विद्वत्ता जगत प्रसिद्ध है | अगस्त्य मुनि को ऐसी पत्नी चाहिये थी जो सांसारिक सुखों से निर्लिप्त हो, त्याग तपस्या का जीवन बिता सके । वे आर्यों-अनार्यों को एक करने के प्रयत्न में लगे थे जो पत्नी के सहयोग के बिना कठिन था । उन्हें मिली पत्नीरूप में लोपामुद्रा जिनके ज्ञान एवं साधना से मुनि का स्वप्न साकार हुआ। +HD+ विदर्भ के राजा की पुत्री लोपामुद्रा ने वैभव को ठुकराकर ज्ञान-वृद्ध मुनि को अपना जीवन सौंप दिया। घोषा, अपाला आदि वैदिक युग की विदुषी नारियों को कौन नहीं जानता । अपनी ब्रह्मसाधना के कारण वे ब्रह्मवादिनी नारियों के रूप में विख्यात हैं। नारियों ने मन्त्रों की रचनायें की हैं। रामायण महाभारत काल में भी आदर्शों का पालन करने वाली महान् नारियों की गाथा उस युग में भी शिक्षा के व्यापक लक्ष्य की ओर संकेत करती है । मध्ययुग में हुई मीरा ने साहित्य को अनूठी देन दी राजपूत वीरांगनाओं की शौर्यगाथा इतिहास कहता है । उनकी शिक्षा का लक्ष्य और स्वरूप धर्म के लिए, आन-बान के लिए मर मिटने का था। रानी दुर्गावती, चांदबीबी आदि का संगीत, कला और सैन्य संचालन में दक्ष होना उस युग की शिक्षा के लक्ष्य की एवं व्यापक स्वरूप की कहानी कहता है। इसी प्रकार ताराबाई, अहिल्याबाई आदि के शौर्य की गाथायें भी। कालान्तर में छोटी अवस्था में विवाह हो जाने के कारण शिक्षा के अधिकार छिन गये । स्त्रियों का उपनयन संस्कार बन्द कर दिया गया, जिसके बाद आठ वर्ष के बालक-बालिकायें वेदाध्ययन प्रारम्भ करते थे । मनु ने नारी की महानता तो स्वीकार की पर स्त्री की रक्षा को आवश्यक बता दिया और उसकी स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लग गये Jain Education International पिता रक्षति कौमारे भर्ती रक्षति यौवने । रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ॥ फिर तो स्त्री सम्पत्ति बन गई। 7 गोदान, स्वर्णदान की भाँति कन्यादान की भी परम्परा चल पड़ी। विधवा का पति की सम्पत्ति पर अधिकार नहीं रहा। नारी के कर्तव्य की सीमा शान्ति के समय परिवार को सुखी बनाने में सहायक होना और युद्धकाल में विजयी बनाने में योग देना, मात्र निर्धारित हो गई। विधवा विवाह पर रोक लग गई । केवल राजघराने की लड़कियों को ही सैनिक शिक्षा को स्वतन्त्र थीं । या दूसरी शिक्षायें दी जाती थीं। वे ही वर चुनने बौद्ध और जैनकाल में नारी को पुनः सम्मान मिला। बुद्ध ने मोक्षप्राप्ति के लिये स्त्री-पुरुष दोनों को बराबर समझा। संघ का द्वार नारियों के लिये खोल दिया । यह वह युग था जब स्त्रियों का क्रय-विक्रय होता था । पति किसी भी समय पत्नी को छोड़ सकता था । सम्पत्ति पर अधिकार पुत्र का फिर पोत्र का था। नारी ज्ञान-विज्ञान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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