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________________ बच्चों का चरित्र-निर्माण । श्रीमती कुमुद गुप्ता प्राध्यापिका, हिन्दी ज्ञान मन्दिर महाविद्यालय, नीमच (म० प्र०) स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के सामने जो अनेक समस्याएँ उदित हुईं, उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या बच्चों के चरित्र-निर्माण की है। क्योंकि वर्तमान समय में सर्वत्र अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार, हिंसा का बोलबाला दिखाई देता है । इसका मुख्य कारण है, नागरिकों में मानवीय गुणों का अभाव । इन मानवीय गुणों के अभाव में किसी भी राष्ट्र या समाज की प्रगति सम्भव नहीं हो सकती। राष्ट्र और समाज के सर्वांगीण विकास हेतु बच्चों के चरित्र निर्माण की दिशा में चिन्तन करना आवश्यक है। बच्चों का चरित्र ही राष्ट्र की प्रगति की आधारशिला है। चरित्र क्या है ? चरित्र, संसार की सबसे बड़ी कर्म-प्रेरणा शक्ति है। इसी के द्वारा मानव-स्वभाव एवं राष्ट्र का सर्वोत्तम स्वरूप प्रकट होता है। पर उत्तम प्रकार का चरित्र बिना प्रयत्न किये प्राप्त नहीं किया जा सकता । इसके लिये वर्षों की सतर्कता, आत्मानुशासन, आत्मनियन्त्रण व सावधानीपूर्वक आत्मनिरीक्षण करते रहने की आवश्यकता होती है। प्रेरणा शक्ति के द्वारा शिशुओं या बालकों में उन शक्तियों का विकास किया जा सकता है जिन पर उनका स्वरूप, सफलता और सुख निर्भर है। अच्छी आदतों का समूह ही चरित्र है। सच्चाई, न्याय, अहिंसा, उदारता, क्षमाशीलता, समय की पाबन्दी, विश्वास, परोपकार, आज्ञा-पालन मानवीय गुणों के आधारस्तम्भ हैं। या यों कहें कि चरित्र-निर्माण की दिशा में प्रथम प्रयास हैं। जिस समाज या राष्ट्र के व्यक्तियों में ये गुण जितनी अधिक मात्रा में होते हैं वह राष्ट्र उतना ही अधिक प्रगतिशील राष्ट्र माना जाता है, क्योंकि देश की प्रगति उस देश के नागरिकों पर निर्भर है। राष्ट्र व समाज के सर्वांगीण विकास हेतु बच्चों के चरित्र-निर्माण की दिशा में चिन्तन करना आवश्यक है । बच्चों के बारे में बाल-विशेषज्ञों का मत . बच्चों का मस्तिष्क और उनका स्वभाव कच्चे घड़े के समान होता है। उस पर जो भी चिन्ह पड़ेंगे वे अमिट हो जायेंगे। वैसे भी बालक की प्रवृत्ति सीखने और अनुकरण करने की होती है उसमें अच्छे या बुरे का ज्ञान नहीं होता। बालकों के चरित्र-निर्माण का उत्तरदायित्व उनके अभिभावकों और अध्यापकों पर निर्भर है। चरित्र मानव-स्वभाव का सर्वोत्तम विकासशील स्वरूप है। यदि मानव-जीवन के किसी भी क्षेत्र पर दृष्टि डालें, तो हम देखेंगे कि प्रतिभाशील लोग अपने चरित्र के आधार पर ही समाज में प्रतिष्ठित पद प्राप्त कर लेते हैं। क्योंकि चरित्र ही मनुष्य के सहज और स्वाभाविक गुणों को निखारता है। मनुष्य की प्रतिदिन की छोटी-छोटी बातें ही उसके चरित्र का निर्माण करती हैं और वे ही मानव की प्रगति की आधारशिला बन जाती हैं। किन्तु आज की भौतिक सभ्यता चरित्र की पवित्रता और उत्तमता पर अधिक बल नहीं देती है। जार्ज हरबर्ट का कथन है "थोड़ी सी सच्चरित्रता हजारों ग्रन्थों के अध्ययन से बढ़कर है।" कहने का तात्पर्य है कि विद्या हमेशा सदाचार की सहायक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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