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________________ ६६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड सम्पन्नता समाज के किस काम की जबकि वे किसी भी असमर्थ व्यक्ति को सहारा न दे सकें ? वास्तव में वही समाज आगे बढ़ सकता है जो अपने कमजोर से कमजोर सदस्य को भी सम्मानपूर्ण जीवन जीने की व्यवस्था दे सके । अक्सर लोग अपने पैसे का उपयोग धर्मस्थानों जैसी भौतिक इकाइयों के निर्माण में लगाना चाहते हैं, या फिर जीमनवार या वरघोड़ा (जुलूस) जैसे बाह्य आडम्बरों में करना चाहते हैं । पर क्या उन्हें पता नहीं है कि चैतन्य निर्माण का एक बहुत बड़ा काम भी सम्पन्न और समझदार लोगों के सामने है। ईसाई लोगों ने तथ्य को बहुत जागरूकता से समझा है। इसी का परिणाम है कि आज अपनी संस्कृति का प्रचार करने में वे सबसे अग्रणी हैं। मैंने तो देखा है कि बहुत सारे जैन लोग भी अपने बच्चों को ईसाई स्कूलों छात्रावासों में भेजना पसन्द करते हैं और यह कठिनाई एक स्थान की नहीं है बल्कि सभी बड़े-बड़े नगरों में छात्रों को जिन कठिनाइयों से जूझना पड़ता है उनमें आवास की कठिनाई सर्वोपरि है। इसीलिए अनेक स्थानों पर समाज की ओर से कुछ व्यवस्थाएँ जुटाई जा रही हैं। पर मैं इन व्यवस्थाओं में भी कुछ कमी देख रहा हूँ। इसमें कोई शक नहीं कि आजकल छात्र आजादी चाहते हैं। हमारे समाज के छात्र भी इस बात के अपवाद नहीं हैं। छात्रावास हो और उसमें संस्कार-निर्माण की बात न हो तो उसका उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। प्रार्थना जैसी चीज भी छात्रों को भारी लगती है तब आगे की बात ही नहीं रह जाती। पर इस बारे में हमें केवल छात्रों को ही दोषी ठहराना उचित नहीं है । यह प्रश्न केवल छात्रों का ही नहीं अपितु सारी परम्परा का है। यह ठीक है कि लोगों का धर्मस्थानों से सम्पर्क रहना आवश्यक है। पर यदि इस सम्पर्क को जीवन्त बनाना है तो इतना ही पर्याप्त नहीं है कि कुछ बँधी बंधाई परिभाषाएँ उनके गले बाँध दी जायें। बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि धर्म के ज्योतिर्मय स्वरूप को सामने रखा जावे। यद्यपि प्रारम्भिक स्तर के लोगों के लिए कुछ बँधी-बँधाई परिभाषाओं और उपासनाओं की भी आवश्यकता है। पर जो-जो लोग प्रारम्भिक स्तर की देहली लाँघ चुके हैं, खासकर छात्रावासों में पढ़ने वाले लोगों को अब वह रजिस्टर्ड गोली नहीं गिटाई जा सकती, उनके लिए जीवन्त धर्म-दर्शन की आवश्यकता है। यह ठीक है कि छात्रावासों में भी चाहे कितनी ही सुन्दर व्यवस्था क्यों न करो पर सब लोगों को सुसंस्कारों में बाँधना असंभव है। यदि इस व्यवस्था से निकलने वाले कुछ लोग भी लाभान्वित हो सकें तो वह धर्म की बहुत बड़ी सेवा होगी। समाज के अग्रणी लोगों को इस तथ्य को समझने की बहुत बड़ी आवश्यकता है। उदाहरण के लिए छात्रों को ऊपरी विधि-निषेधों में नहीं बांधकर यदि अन्तर्जागरण की ओर उन्मुख किया जा सके तो वह बहुत महत्त्वपूर्ण बात होगी। पर क्या आज समाज के जो छात्रावास चल रहे हैं उनमें जो व्यवस्थापक रहते हैं, उनमें से ऐसे लोग बहुत ज्यादा निकल सकेंगे जो स्वयं भी अन्तर्जागरण का महत्त्व समझते हैं। मेरे विचार से ध्यान के प्रति छात्रों में बहुत अभिरुचि बढ़ती जा रही है। कहीं यदि नहीं भी बढ़ती है तो उसे बढ़ाना जरूरी है। निश्चय ही ध्यान कोई ऊपरी विधि-निषेधमूलक उपासना-पद्धति नहीं है। पर इससे जितना विवेक जागृत होता है वह किसी भी उपासना से ज्यादा लाभकर साबित हो सकता है। पर कठिनाई यह है कि यदि व्यवस्थापक स्वयं ही ध्यान से अपरिचित हों तो दूसरों को वह प्रशिक्षण कैसे दे सकते हैं ? जिन छात्रावासों में कुशल व्यवस्थापक होते हैं वहाँ के छात्र बहुत सहजता से उनकी बात को स्वीकार कर लेते हैं। बहुत बार तो योग्य व्यवस्थापक मिलते ही नहीं और कहीं यदि मिल भी जाते हैं तो आर्थिक कारणों से बहुत जल्दी उनकी विदाई हो जाती है। सचमुच, यह किफायतशारी छात्रों की चेतना को जगाने के लिए लाभकारी सिद्ध नहीं हो सकती। प्रार्थना भी इस दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण बात है। प्रार्थना ही नहीं, कहीं-कहीं छात्रावासों में सामायिक भी करवाई जाती है। पर यदि व्यवस्थापक कुशल है तो वह सामायिक को भी इतना आकर्षक रंग-रूप प्रदान कर देता है कि उससे छात्रों को ऊब पैदा नहीं होती । वास्तव में सामायिक और प्रार्थना भी ध्यान के ही रूप हैं । भक्तिप्रधान लोग प्रार्थना में ज्यादा रुचि लेते हैं तथा ज्ञान-प्रधान लोग सामायिक में अधिक रुचि लेते हैं। छात्रों की रुचि को ध्यान में रखकर उन्हें उस ओर अग्रसर किया जा सके तो निश्चय ही उनमें रस पैदा किया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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